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Tuesday, June 4, 2013

i n f e r n o ____________COMPLETED !!

महफ़िल!
किसकी महफ़िल?
खुद की!
तालियाँ, वाहवाहियां और शाबाशियाँ भी, _खुद की!
अमराई में, पेड़ के नीचे, मीर और मिर्ज़ा के शतरंज (Only for Oneself) की बाज़ी जैसी!
खुद की काबिलियत पर खुद ही मुतासिर ...
दूर ..., एक 'गधा' बंधा, खड़ा, इस शेरों-शायरी की महफ़िल से मुख्तलिफ, अपनी क्षुधा-पिपासा के अलावे जिसे और कुछ नहीं चाहिए, ....देख रहा है, ... खा-चबाकर उसकी तरफ फेंके गए उन आम की उन गुठलियों और आम की फलियों के टुकड़ों को,  ...संदिग्ध, ...उसने सूंघा तक नहीं, मुँह फेर लिया।
आम को नापसंद करने वाले, तालियाँ पीटते एक बन्दे ने दुसरे, (इस महफ़िल से अलग) आम का मज़ा लेते बन्दे से, _घृणा से कहा :"देखो गदहा भी आम नहीं खाता!"
दुसरे (आम का मज़ा लेने वाले बन्दे) ने खिलखिला कर _हँसते हुये कहा :"मियाँ! "सिर्फ -गदहे ही- आम" नहीं खाते!"
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अतः हम DAN BROWN को आम ही समझकर पढ़ते हैं, और देसी आम भी, _"जमकर" खाते हैं'! और इसी से हमारी उस क्षुधा-पिपासा को शान्ति मिलती है, जो शीतल गंगाजल अथवा ज़म-ज़म(ZamZam) से मिलती है! कृषण चन्दर जी के सारे-के-सारे 'गधे' मेरे साथ अभी यही "आम" खा रहे हैं, जिसमे हर वह सदगुण समाहित है जो हमारी "-समस्त संकीर्ण मानसिक घमंड-" से परे एक "स्वच्छ", "निर्मल", "निश्च्छल", "निष्पक्ष", "पवित्र", "शुद्ध", _"ज्ञान", "विज्ञान: Every Engineering & Medical Science", "इतिहास", "साहित्य", "कला", "दर्शनशास्त्र", "मनोविज्ञान", "नीति", "कूटनीति", "षड्यंत्र", "रहस्य", "भेद,!....भेद के भीतर भेद", "हर जगह भेद-ही-भेद", "रहस्यमय डरावना रहस्य", "और भेद का उद्भेदन", "THRILL", "ACTION", "SUSPENSE", "TERROR", "HORROR", "रोमांच", के साथ दुनियां के सुन्दर शहर/शहरों की ऐसी सैर, और चौंकाने वाले वैज्ञानिक आविष्कार और यंत्र", जिनका इस्तेमाल दक्ष हाथों से ही नियंत्रित हो सकता है!" "एक विश्व प्रसिद्ध हार्वर्ड युनिवेर्सिटी के आर्ट/सिम्बोलोजिस्ट/आइकोनोलोजिस्ट/हिस्टोरियन, बेहद ही सीधे-सादे 42-वर्षीय प्रोफ़ेसर 'रोबर्ट लैंगडॉन' है, जिनकी सामान्य दिनचर्या की शुरुआत ही -असामान्य- रूप से होती हैं!" (Oh! Dear DAN as usual !! ha ha !) "धर्म", "प्राचीण प्रतीक", या कोई "puzzled दोहा", _भेद भरा!", "आचार", "व्यवहार", "सदगुण", "चरित्र", "मानवता", और कौशल के साथ-साथ 'आदमी-इंसान-मानव-मनुष्य' की सर्वोच्चतम महत्वाकांछा, पशुवृत्ति, और पाशविकता की पराकाष्ठा के डरावने पर सच्चे, खुंखार, बर्बर कुकृत्यों के चरित्र-चित्रण का (without any vulgarity, without any butchered, bloodshed) ऐसा भण्डार है, (outside the boundary of any country and religion) ऐसी सच्चाई है, जिसे ठुकराना निष्ठुरता और कायरता और अनिपुणता हो सकती है, होगी! कभी विवशता के आंसू, ...तो कभी क्रोध की प्रचंड आँधी, ...जिसे हरेक आम खाने वाला पढता है, पढ़ रहा है, पढना चाहिए, पढता होना चाहिए, पढना चाहेगा, और पढ़ेगा भी! आम के साथ "चा"-पानी पीते रहिएगा; DAN के किरदार शायद ही कभी कुछ खाते-पीते है!! पर मान-सम्मान, स्वाभिमान से आप रोमांचित होंगे! ये गारंटी है! गहन शोध से परिस्कृत, विस्तृत विलक्षण विश्लेषण से स्वतः विश्लेषित कथानक, जो किसी और के विश्लेषण का कतई मोहताज़ नहीं!
...पढ़िए!
'..और जो ना पढ़े ...?.....................!'
.......हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है!
चुटकुले और लफंगई की कोई गुंजाइश नहीं! इसके अन्य साधन बेशुमार हैं! but never DAN DROWN!
डेढ़ इंच मोटा, ...और लगभग, ...म्मम्म, ..आधा किलो (से थोदा कम) भारी किताब, 465-पृष्ठ; सिर्फ 24-घंटे की कहानी!! इसकी स्पीड का अंदाजा अब आप लगाइये.....
रहस्य गढ़ना फिर उसे परत-दर-परत उधेड़ने की DAN BROWN की कला बेमिसाल है; जिसमें निहित ज्ञान मेरे (singular; न कि -हमारे- जैसे, कोई मेरे जैसा भला क्यों होगा?) जैसे कूप-मंडूकों को -महासागर- प्रदान करती है!!
i n f e r n o ______complex______COMPLETED !!
HORRIFIC -Unexpected- CLIMAX !!
wOw!! 
YamYam 
"पईसा असूल"
_श्री .