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Thursday, May 2, 2013

STORY OF AN ABANDONED CHILD!

एक त्यागा हुआ बच्चा!
बच्चे के जन्म के चंद महीनों बाद ही बच्चे की माँ की असामयिक, आकस्मिक मृत्यु .....!!
बाप ने नहीं पूछा, दूसरी शादी रचा ली  .......!
चाची-चचाओं ने नहीं पूछा, अपनी दुनियाओं में खो गये  .......!!
दादा-दादी ने नहीं पूछा, आखिरकार इतना बड़ा "कुटुम"(कुटुंब) है!!
...बस दादी कभी रो लेती थी ....!
और चचेरी बहन रो-रोकर सूनी-सूनी-सी हो गई!
आखिरकार किसी ने पूछा।
बच्चे की नानी ने!
नानी के बड़े भाई  ने इस त्यागे हुए बच्चे को अपना लिया !!
यह बच्चा जिसे इसका "पूर्ण-नव-पत्नी-व्रता" पिता अपना नाम तो क्या अपना एक दस्तखत तक देने को राज़ी नहीं...! जो भाई कभी अपनी वीणा दीदी का दुलारा खिलौना था, "..बउआ था !!", ...वीणा से दूर रहते हुए भी सदा उसके दिल में रहा! अपनी दादी से बच्चे की चचेरी दीदी (वीणा) हमेशा पूछा करती थी :"ए, ईया! ई बउवा कब ले आई?"...पर दादी खुद कुछ जानती तो बताती न !! बहन, अपने भाई के उसके नाना के यहाँ चले जाने से अकेली रह गई थी, उसे याद कर रोती रहती ...!!

मेरी मुलाकात इस बालक से इनके दादाजी की म्रत्यु-परांत के कर्मकांड के दौरान हुई! उसी समय मैंने इसकी बचपन की कहानी सुनी! तभी से यह बालक मेरा दोस्त बन गया! बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के इस बालक ने CAT  Indian Institutes of Managementपास किया और BIT (Birla Institute of Technology, MESRA, RANCHI JH.) से MBA की पढ़ाई, शानदार तरीके से पूरी की!! और आज यह खुबसूरत गबरू नौजवान दिल्ली में एक बड़ी कंपनी के मैनेजमेंट विभाग में कार्यरत है! रांची में अपनी MBA की पढ़ाई के दरम्यान इसने दो (2) वर्ष [होस्टल में रहते हुए भी] हमारे साथ गुजारे। इस दौरान हमारे पारस्परिक सम्बन्ध और और और प्रगाढ़ हुए! बहन ने बचपन से लेकर अबतक की जैसे सभी राखियाँ अपने भाई की कलाई पर बाँधी! बहन-भाई का पुनर्मिलन हो गया!

a real DABANGG !! की शादी !
बहन 21 अप्रैल को ही 'तिलक' में सम्मिलित होने के लिए चली गयी थी! कार्यालय की व्यस्तता और मुझे अभी मालिकान की इजाज़त भी लेनी थी, अतः मुझे छुट्टी मिलते ही यात्रा की तैयारी शुरू हो गई!

25/04/2013
सबकी जिद्द थी कि 'इतने' लम्बे सफ़र में "-मैं-" गाडी नहीं चलाऊं! 500KM से ज्यादा की दूरी, अव्यवहारिक, अव्यवस्थित ट्रैफिक और रैश ड्राइविंग को 'कंपीट' करने का मेरा भी कोई इरादा नहीं था। ऐसे मौके पर अभी मुझे कलीम की भारी कमी सता रही है! कलीम मेरा favourite (all time) ड्राईवर है, मेरे बेटे की उम्र का है, लेकिन, चूंकि मैं ड्राईवर की रेगुलर और दैनिक सेवा नहीं चाहता, न जरूरत होती है; अतः कलीम अपना और अपने बीवी बच्चों का पेट पालने के लिए किसी और की नौकरी करता है! और उसका मालिक रोजीना अपनी गाडी भाड़े/सट्टे पे कमाई के लिए चलवाता है, जो कलीम को छुट्टी देने को राजी नहीं! कलीम एक दक्ष ड्राईवर है जिसे कई राज्यों के कई कई रास्तों की बड़ी अच्छी जानकारी है! मैंने जब-जब उसे अपने ड्राईवर के तौर पर रखा किसी भी सफ़र में उसे मैंने गाडी रोककर राहगीरों, या लोकल दुकानदारों से सही रास्ते की जानकारी के लिए पूछताछ करते नहीं देखा कि : "... अंऐं भैया एहे रस्तवा नि पटना जईतई?" कलीम हमेशा मुझसे कहा करता है कि 'सर, ए गो बढियां गाडी लीजिये ना, हम बराबर साथे रहेंगे, गाडी भाड़ा में चलेगा, उसी से कमा कर लोन भी चूका देंगे!' ......मगर अफ़सोस अभी मेरी दशा ऐसी नहीं! ...अब कलीम की जगह रमेश जा रहा है! ये हमारे कर्मक्षेत्र के नाईट गार्ड का बेटा है, मुझे भरोसा दिलाया गया है कि इससे आपको निराशा नहीं होगी। और वाकई मुझे कोई निराशा नहीं हुई!

सो, हम सुबह सवेरे गौरी-गणेश-महेश को मना कर निकल पड़े! अभी हमारे यहाँ [लोहरदगा, (झारखण्ड)] में एक हलके चादर वाला गुलाबी जाड़े का मौसम है! लेकिन जैसे जैसे हम आगे बढ़ते गए गर्मी का प्रकोप बढ़ता गया! लोहरदगा से चतरा तक का सफ़र ठीक-ठाक ही नहीं आनंददायक रहा, शक हुआ कि झारखण्ड सरकार बिहार सरकार से कुछ सीखकर सड़कें ठीक करवा रही है! "गया" पहुँचते ही लगा जैसे हम चूल्हे पर चढ़े किसी कूकर में बंद हैं! चतरा के बाद आखिरी मुकाम -(बिहार)-...डोभी, गया, जहानाबाद,पटना, गाँधी सेतु, हाजीपुर फिर मुजफ्फरपुर तक सड़ी हुई गर्मी, और पिछले "--15 वर्षों से लगातार निर्माणाधीन--" सड़कें अभी भी अपने फूटे करम पर रो रहीं हैं और उससे भी कहीं ज्यादा हमें रुला रही है! कभी भी, कहीं भी चैन नहीं मिला! खूब हिचकोले खाते, गेंद की तरह उछलते, गिरते, लुढ़कते माँ के कोसनों, और (घर की दाई) कलवातिया-'दी' के "भाँड-बिसर" गारी सुनते, पसीना पोंछते, गर्म पानी पीते, और मेरी पुरानी बिमारी Coccydynia [Coccydynia is a medical term meaning pain in the coccyx or tailbone area, usually brought on by sitting too abruptly.] जो फिर धमका रही है, का दर्द सहते 03:30PM बजे हम मुजफ्फरपुर पहुँच गए! भगवानपुर चौक पर पिंटू भाई जी हमारे इन्तजार में खड़े थे! उनसे मिलन हुआ! वे हमें मुजफ्फरपुर निवास पर ले गए जहाँ हमने 2 घंटे से ज्यादा विश्राम किया! इसी बीच पिंटू जी ने शादी सम्बंधित कुछ वैवाहिक सामग्रियों की शौपिंग कर ली। फिर हमारी गाड़ी से ही वे हमें गाँव रूपनारायण-पुर लिवा ले गये! जहाँ बड़े-बुजुर्गों सहित इस एपिसोड के हमारे "हीरो" से हमारी मुलाकात हुई! रूपनारायण-पुर! ...गाँव!

"गाँव !" .... मेरे हीरो का गाँव! जब हम पहुंचे तब भगवान सत्यनारायण जी की कथा-पूजा हो रही थी। मंत्रोच्चार से वातावरण पवित्र हो रहा था। मैंने देखा ...मवेशियों के खाने वाली चारे की नांदें! ...मिटटी के घर और फूस की छत! इलेक्ट्रिक पोल पर रोता कलपता मरियल बल्ब कराह कर अपनी मजबूरी जताने की कोशिश कर क्षमा माँगा रहा है! ...अनाज रखने वाली मिटटी की गोल-गोल 'कोठियां' और फूस से बनी उनकी उलटे cone जैसी छत! अधिकाँश दीवालों पर ठोके हुवे गोबर के गोइंठे! गाँव का सबसे सस्ता ईंधन!! ...खुला-खुला वातावरण! चारों तरफ फैली हरियाली ही हरियाली! हरेक प्रकार के वृक्ष, पेड़, पौधे, लताएँ, फूलों के अनेक प्रकार के रंग! आम, कटहल, केले, महुआ, पीपल, नींबू , शरीफा, अमरूद, बेशुमार लीचियों के पेड़ों पर नन्हें बल्ब की तरह टिमटिमाते लीचीयों से लदे पेड़, ताड़-तरकुल-खजूर और साबूदाने के पेड़, और इन सबके मुखिया सामान अतिविशाल जटाधारी बरगद जो न जानें कितना बूढा है और जो न जानें इस गाँव के कई परिवारों की कई कई पुश्तें देख चूका है  !!...  जैसे इस छोटी-सी आबादी के एक अंग हों, एक साथ मिलकर मन को मोहे ले रहे हैं! मेरे हीरो के घर का दालान! 'खटिया' पर बिछावन डालकर लेटे, बैठे कई लोग, कई बुजुर्ग, आपस में धर्मचर्चा में मगन,...कोई भाव-भंगिमा बनाते "रुद्राष्टक" सूना कर गर्व से फूले जा रहे हैं; "...प्रचंडं प्रकृष्टम् प्रगल्भं परेशं, अखंडं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ..." तो कोई "देवी कवच" की महिमा बखान रहे हैं! ...एक तरफ नवनिर्मित घर! घर के सामने और एक बगल में लगे चापाकल! एक तरफ एक बड़ा प्रांगण वाला मंदिर और परमात्मा को नमस्ते करता उठा हुआ लम्बा गुम्बद! तीन तरफ से घिरे बीच की ज़मीन इतनी बड़ी कि किसी बड़े शहर में जिसकी कीमत का हिसाब लगाना कठिन है लेकिन किसी भी बिल्डर ताइकून के लिए मानीखेज ...., पर यहाँ इसे "बढ़नी" (झाडु) से बुहारकर, और बिना गोबर के घोल का इस्तेमाल किये हाथ से ही सिर्फ पानी के द्वारा लीपा गया है ...जिसपर लीपने वाली दाई की उँगलियों से चारों ओर अर्धचन्द्राकार आकृतियाँ और वातावरण की खुशबु मुझे मेरे बचपन और बाबूजी की स्नेहिल उपस्थिति की याद दिला रहा है! ...और यहाँ आकर ख़ुशी से मेरी आँखें नम हो रही हैं! '..और मन में 'धरम पा-जी' (धर्मेन्द्र)का चेहरा सामने है, जो गा रहे हैं '.......दिल कहे रुक जा रे रुक जा....यहीं पे कहीं,...जो बात, ...जो बात इस जगह है, कहीं पर नहीं........' रात्रि भोज में दक्ष हलवाइयों द्वारा बनाए खाने का लुत्फ़ उठाते समस्त ग्रामवासी!! सभी से हमारा मिलन हुआ! सही है, असली सभ्यता मिटटी में ही है, कंक्रीट में नहीं!!

नहीं थे तो सिर्फ वो लोग जिनके खानदान का यह बच्चा है! नहीं था तो वह शख्श जिसके बीज से इस बच्चे ने जनम लिया! लानत है उनकी तताकथित विद्वता पर! कितने झूठे हैं वे? और कितनी झूठी है उनकी मर्दानगी और शान, कितना व्यर्थ और शापित है उनका जीवन!

26 -तारीख को मैंने कुछ रस्में देखीं! ऐसी अनोखी रस्में, जिन्हें मैंने पहले कभी देखा सुना नहीं था! हमारे यहाँ बालकों का जब यज्ञोपवीत संस्कार (जनेउ) होता है, लगभग आधी वैवाहिक मांगलिक कार्यक्रम तभी पूरे हो जाते है! बचपन में ही इस बच्चे ने कई जानलेवा बीमारियों को झेला है! इसकी नानी ने बच्चे के स्वास्थ्य लाभ के लिए जितनी मन्नतें मांगीं थीं वह सभी पूरी की जा रहीं थीं! नानी के बड़े भाई जिन्होंने इस बच्चे को गोद लिया है, काफी बूढ़े हो चुके हैं! नेत्र विकार के कारण अब अंधे हो चुके हैं। जिन्हें हीरो 'नाना' कहता है और इनकी पत्नी (वृद्धा नानी) को प्यार से "माई" बुलाता है! सभी ने, यहाँ तक कि 'बहन' ने भी तीन दिनों का उपवास रखा है, रस्में निभाई जा रहीं हैं! आपको जानकार कोई हैरत नहीं होनी चाहिए कि ये सभी रस्में ब्रम्हा के चतुर्थ वर्ण के सपूतों --(शूद्रों)-- द्वारा निभाई जा रहीं हैं! जिसमे एक प्रधान पुजारी है, एक सहायक, एक रसोइया, और दो-तीन जने हैं, और सब मिलकर एक गायक मण्डली भी हैं!! इन्होने केले के थम, और केले के फल सहित केले के पेड़ (कदली/कदरी) के प्रयोग से बीच की ज़मीन पर घर के प्रवेश द्वार के सामने केले के थम से ही बहुत ही खूबसूरत चारदीवारी और बीच में मंडप बना दिया है! जिसमे बांस के बने खिलौने-जैसे धनुष-बाण, तीर-कमान, रंगीन झंडे लगाए हैं! एक लम्बे बांस को रंगीन कागजों से पूरा लपेट कर उसके सिरे पर एक ध्वजा बांधकर उसे मंडप के मध्य में खड़ा कर दिया गया जिसके ध्वजा के बंधन से बंधे कई लारियां चारों तरफ तान दी गईं हैं, जिनपर रंगीन कागजी झंडे लहरा रहे हैं! मण्डली के सभी सदस्यों को "भगत जी" के सम्मानित नाम से बुलाते हैं! इन्हें ख़ास रस्म के समय पीले रंग में रंगी नई धोती, और पीली नई बनियान, दान कर पहनाई गई! इनके गायन और मृदंग के वादन के तारतम्य के साथ मनभावन नृत्य की व्यख्या मेरे लिए कठिन है! लोकगीतों को गाते इनके सभी गाने सृष्टि निर्माता भगवान ब्रम्हा, पालक "श्री"युक्त विष्णु, और उमापति महादेव सहित भगवान् श्रीगणेश जी, हनुमान जी, और सभी प्रधान मातृ-शक्तियों को समर्पित हैं! मृदंग बजाते मुक्त कंठ से गाते और मृदंग को लिए-लिए झूम-झूम कर नाचते भगतन के शानदार परफोर्मेंस को देख मैं मंत्रमुग्ध हो गया! गायन-वादन का लय और तारतम्य, मृदंग की गूँज शांत हो इससे पहले ही गूंजते मृदंग सहित नर्तक हवा में उछलकर एक चक्कर घूम जाता है!! पीतल की थाली के कोर पर दोनों पाँव रखकर मृदंग बजाते नाचते हुए एक भगत जी ने पूरे मंडप की परिक्रमा पूरी की तो हीरो की बहन के मुँह से वाह! निकल गई! जिन्होनें उपवास रखा था सभी ने मंडप की परिक्रमा की! इन्हीं भगतन ने सभी वैवाहिक मांगलिक कार्य पूरे करवाए ! भगत जी लोगों के समस्त कार्यक्रम आत्यन्त मनभावन लगे! मैं अपने Handycam को अभी बहुत miss कर रहा हूँ, जिसका charger पिछली बार बोकारो छूट गया है! सो, still camera से ही संतोष करना पड़ा! पर कई ख़ास मौकों की तस्वीरें नहीं ले सका!

27-तारीख को बरात रवाना हुई! बारात अपने गंतव्य 'नवीनगर'(औरंगाबाद) पहुंची! परंपरागत तरीके से बारात सजी! निकली! द्वार पूजन हुआ! जयमाला की रस्म हुई! इसके बाद डिनर हुआ! मैं हीरो के साथ वापस जनवासे आ गया! उधर "गुरहथी" की रस्म हुई! गुरहथी, को कन्या निरिक्षण भी कहते हैं, लेकिन निरिक्षण वाली कोई बात नहीं होती! यहीं पर दूल्हा का ज्येष्ठ भाई दुल्हन को गहने चढाता है! यही रस्म गुरहथी कहलाती है! ज्येष्ठ भाई यूँ "भसुर" बन जाता है, जिससे दुल्हन सदैव परदा करती है! और घर में घुसते वक़्त भसुर महाशय को खोंख-खंखार की आवाज़ के साथ अन्दर आना पड़ता है! पिंटू जी ने यह रस्म पूरी की! 

...आगे की कहानी थोड़ी फ़िल्मी जरूर है, पर सच्ची!!; बहुत ही महत्वपूर्ण है, कदाचित भावुक भी! ........रात के 02:15AM बजे मुझे हीरो ने जगाया :"जीजाजी उठिए! शादी के लिए बुलाहटा आया है!" मैंने नींद से बोझिल होकर मना किया, लेकिन हीरो ने फिर कहा :"मेरी शादी देखने का मन नहीं है क्या?" ...मैं जागा! देखा सभी प्रधान लोग सोये हुये हैं! बुजुर्ग बीमार नाना भी! मैंने पूछा :"क्या ये लोग नहीं चलेंगे?" गुंजन ने कहा सभी थके हुए हैं! बाकी पिए हुए हैं! आप चलिए! हीरो के कुछ दोस्तों के साथ उसे लिए मैं लड़की के घर पहुँचा! बड़े सत्कार के साथ हमें विवाह मंडप में ले जाया गया! 12 हो या 72, मैंने जितनी भी शादियाँ अपने रिश्तेदारों की अटेंड कीं हैं, सभी में मेरी भूमिका एक फोटोग्राफर की ही होती है! यहाँ भी मुझे यही करना था! मैंने प्रोफेशनल विडियो शूट करने वालों के बीच अपना मुकाम बनाया और एक कुर्सी की गुजारिश की जो तत्काल पेश हुई, मैं उस पर बैठकर चाय सिप करते, जम्हाई रोक-रोक कर फोटो खींचने लगा! पंडित जी ने विधि-विधान के अनुसार वेद मन्त्रों का उच्चारण शुरू किया! और दुल्हे से बिभिन्न प्रकार के पूजा करवाने लगे!

 "...लड़के के पिताजी को बुलवाइये!" _अचानक पंडित जी की यह आवाज़ सुनकर मैं चौंका!! 

क्षण भर में ही कई तरह के भाव मेरे मन में उथल-पुथल मचाने लगे! शायद यह भगवन के नाम से पुकारे जाने वाले का षड्यंत्र था! हीरो की सामाजिक अवस्था से भली-भाँति परिचित होकर भी इस प्रकार के पुकार का मतलब मैंने सिर्फ यही समझा कि शायद पंडित जी इन बातों से अनजान हैं! मैं चुप रहा! तभी लकड़ी का बना और सनमाइका जड़ा एक बड़ा-सा पीढ़ा आया उसपर सिली हुई एक आसनी रखी गई, पंडित जी ने उस पर अभिमंत्रित अक्षत की बौछार की और बोले : "हाँ, भाई समाधी जी के बोलाइये!"...मैंने सोचा नाना क्यों नहीं आये ......तभी मैंने देखा एक व्यक्ति, जो दोनों घरानों से सम्बंधित हैं, ने पंडित जी से कुछ कहा, पंडित जी ने मुझे इशारा किया _कहा :"बाबू, आप यहाँ आइये!" पीछे से मेरे एक रिश्तेदार की आवाज़ आई :"उठअ हो सिरकांतजी, आगे बढ़अ !!" ...मैं अभी भी बात नहीं समझा था, ...शरमाते-सकुचाते मैं मंडप के भीतर गया, आशंकित भाव से पंडित जी को देखा जैसे पूछना चाहता हूँ कि :"_क्या?" पंडित जी ने मुझसे कहा कि मैं "इस" आसन पर बैठूं!! ......शायद कभी किसी ने मुझे "यशश्वी भवः" का आशीष दिया होगा जो आज फलित हुआ! मैंने 'ऊपर वाले' के "गेम" को समझ लिया! नाम आँखों से हीरो को निहारते, और गर्व से छाती तान कर मैं उस आसन पर विराजमान हो गया! मंत्रोच्चार में हीरो के (रक्त)खानदानी बाप-दादाओं के नाम के शुमार से मुझे कतई कोई ऐतराज़ नहीं हुआ! लेकिन कभी भी हीरो ने अपने मुँह से अपने बाप का नाम नहीं लिया! एक छोटे से शंख और अक्षत द्वारा पंडित जी ने मुझसे कुछ पूजा करवाई! फिर लड़की को बुलाया गया! लड़की के माता-पिता भी आये और विवाह शुरू हुआ! लड़की के पिता ने एक समधी के रूप में मेरा सत्कार किया! हमने एक दुसरे को जनेउ पहनाया! एक दूसरे की छति पर दही और तिलाक-युक्त पान चिपकाए, और गले मिले! मैंने हीरो के पिता के रूप में सभी वैवाहिक मंगलाचार पूरे किये! फिर कन्यादान के वक़्त भी लड़की के पिता ने कन्यादान कर वर के हाथ में अपनी बिटिया का हाथ दे दिया, उस पर वही शंख रखा गया जिससे पंडित जी ने मुझसे पूजा करवाई थी, लड़की के दो भाइयों ने शंख पर तैलधारावत जल प्रवाहित करना शुरू किया, जो एक पीतल के बड़े-से कड़ाह में जमा होता गया, पंडित जी ने लगातार वैदिक मंत्रों का जप जारी रखा ...फिर वर-वधु का हाथ मेरे हाथों में सौंप दिया गया! फिर "लावा" (धान) मेराई! ...फिर भँवर! ...फिर सिंदूरदान! ...फिर चुमावन! ...फिर कोहबर! सारी रात महिलाओं द्वारा छेड़खानी भरी "गारी-युक्त" गीतों का मधुर गायन होता रहा! ...सुबह "मथझका" के वक़्त मैंने नाना को बुलवा लिया और उन्हीं से संपन्न करवाया! फिर मंडप (मड़वा) में ही सभी प्रमुख लोगों का भोजन हुआ! फिर मेहमानों की बिदाई हुई! 'समधी-मिलन' हुआ! कुछ रस्में पूरी कर मैं अपनी "बहु" को लेकर हीरो की बहिनिया के पास जाने को निकल पड़ा!

रास्ते में तीसरी बार "गंगा माई" के दर्शन हुए! महात्मा गाँधी सेतु! मैंने अपनी जेब कुछ सिक्के निकाले! नेपाली ड्राईवर को मैंने गाडी रोकने को कहा! मेरे बताये स्थान पर उसने गाडी खड़ी की! मैंने अपने पास के सभी सिक्के बहु के हाथ में देकर मंगलकामना और प्रार्थना करने को कहा! फिर वे सिक्के बहु से ले कर वर-वधु दोनों को "_नियुंछ कर_" वह सभी सिक्के गंगा माई को अर्पण कर दोनों को आशीर्वाद दिया! ....फिर हम घर (गाँव) पहुँच गए! 

28-तारीख को विदा होने से पहले बहु (प्रियंका nickname : छोटी) को जब मैंने आशीष दिया तो उसने कहा :"...अब तो आप ही मेरे पापा हैं न?" ....................................................................!'

30 अप्रैल, 2013 लोहरदगा वापस!

इस यात्रा में मेरी कुछ भूमिका रही हो, कुछ उपलब्धियां रहीं हो ....लेकिन मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि रही कि वहां की बच्चा पार्टी में मैं काफी घुल-मिल गया! और मुझे एक बड़ा ही प्यारा नन्हा दोस्त मिल गया! पहली बार वह सहमा हुआ था, दूसरी बार संकोच में था पर धीरे-धीरे वह मुखर होता गया! पहली बार मैंने उससे पूछा "मुझे पहचानते हो?" उसने नज़रें झुकाकर सहमती में सर हिलाया! "कौन हूँ मैं?"_मैंने पूछा। सहमी हुई हलकी आवाज़ में उसने कहा :"दादाजी!" मैं जम कर हंसा! यह छः (6) वर्षीय बच्चा, पिंटू जी का बेटा है! पिंटू जी अपना और अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए मुजफ्फरपुर शहर में ऑटो चलाते हैं! यही बच्चा दुल्हे मियां का "सहबाला" बना था! रास्ते भर यह मेरी ही गोद में गया और लौटा! अब यह मुझे "अंकल जी" कहता है! जब मैंने उससे कहा कि मैं और तुम अब दोस्त हैं! तो उसने अपनी नन्ही उँगलियों के इशारे से मुझे झुकने को कहा! मैं झुका, उसने मेरे कान में कुछ कहा! मैं समझ न सका! बच्चे _आदित्या उर्फ़ प्रियांशु_ ने कई बार कोशिश की, मैं उसके शब्द नहीं समझ सका! तब मैंने आस-पास मौजूद सभी को भगाया और उससे बोला कि 'यार जोर से बोलो' तब उसने देखा कि वीणा भी मुस्काती हुई हमारी ओर ही आ रही है! बच्चा फिर चुप हो गया! तब वीणा ने कहा :"जोर से बोलो बाबु, ई तनी जादे ही बहिर हैं!" 
तब प्रियांशु ने कहा :" दोस्त तो चौकलेट देने से बनते हैं न? हम आपको चौकलेट देंगे, तो आप हमको कौन वाला चौकलेट दीजियेगा?" वीणा ने उसकी जेब भर दी! 
मैंने वादा किया की अगली बार जब मैं मिलूँगा तब cadbury के बड़े वाले चौकलेट दूंगा; तबतक इनसे जो मन करे खरीद कर खाए! वह मुझसे लिपट गया! वीणा ने उसका माथा चूम लिया!

शुभम !
_श्री .