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Saturday, April 13, 2013

the oath of the vayuputras

शिव ने भी एक अनिष्टकारक स्वप्न देखा है जिसकी कल्पना मात्र से उसने खूब रुला दिया! ...the oath of the vayuputras के जिस हिस्से पर हूँ वह आज परदेस है! वायुपुत्रों से शिव की मुलाकात हो गई है! (भाई लोगों ये तो कतई बंदर नहीं हैं!), ...वायुपुत्रों की शपथ की महत्ता को समझने के लिए किताब पढना जरूरी होगा! .........आगे एक कृतघ्न द्वारा घातक षड्यंत्र रचा जा चूका है; ... परदेस से ही एक assassin को hire किया गया है जिसका एक ग्रुप है! उनके षड्यंत्र के जाल बिछ चुके हैं और पहला चारा सती को पेश किया गया है .........!? तीन मोर्चों पर भयानक युद्ध हो चुके हैं! और दुश्मनों का एक नया मोर्चा एक संवेदनशील स्थान पर शिव की अनुपस्थिति में युद्ध की दुंदुभी बजा रहा और ललकार रहा है!! युद्ध के वातावरण में छल-प्रपंच का भयानक जाल बुन जा चूका है!!..... "ब्रम्हास्त्र" और "पशुपतास्त्र" जैसे दैवी अस्त्रों की दुनिया ....."परिहा" से समुद्र के रास्ते शिव वापस लौट रहा है,... तब तक शत्रु ने  घातक चाल चल दी है !!........... मेरे दिल की धड़कन भयानक रूप से बढ़ चुकी है! मैं दही कचौड़ी कभी हाथ से कभी चम्मच से हड़बड़ी में खा रहा हूँ!! नज़रें किताब के पन्नों पर है, मेरी दिल की धक्-धक से हिल कर कोल्ड ड्रिंक्स की बोतल हॉट होकर गिर गई है .........., हे भगवन चाय भी ठंढी हो गई है, हाथ-मुँह पर की दही दिमाग को भी दही बनाय दे रही है, ...अमीश ने शिव के मार्फ़त वार्निग दी है चाहे दही की हांडी फूटे या दिमाग पढ़ते जाओ, पढ़ते जाओ ...किताब हाथ से नहीं छूटना चाहिए .....चाहे वायुपुत्रों की जगह नोवेल रीडर को ही बंदर क्यों न बनना पड़े.....

रात भर जाग गर इस फाइनल (3rd) किताब को पूरा किया!

एक बात बे-हिचक कहूँगा: इसपर बनी फिल्म को इंटरवल के बाद कोई देख, झेल नहीं पायेगा!

बेटियाँ

हैं समस्या बेटे गर, समाधान है बेटियाँ!
तपती धुप में जैसे, ठंडी छाँव हैं बेटियाँ !!

होकर भी धन पराया, है सच्चा धन अपना,
दिखावे की दुनियां में, गुप्तदान हैं बेटियाँ!!

अपनी बदहाली की, कीं सबने बहुत चर्चाएँ!
हैं ढापति कमियों को, मेहरबान हैं बेटियाँ!!

तनाव भरी गृहस्थी में, है चारों ओर तनाव!
व्यंग्यबाणों के बीच, जैसे ढाल हैं बेटियाँ!!

हैं दूर वे हम सबसे, है फिक्र उन्हें हमारी!
करतीं दुआयें हरदम, खैरख्वाह हैं बेटियाँ!!

है बेटा कुलदीपक, घर ये रौशन जिससे,
दो घर जिनसे रौशन, आफताब हैं बेटियाँ!!

हैं लोग वे ज़ल्लाद, जो ख़त्म उन्हें हैं करते!
टिका जिनपे परिवार, वह बुनियाद हैं बेटियाँ!!

मांगतीं हैं मन्नत, बेटों की खातिर दुनिया!
श्रीकांत की नज़र में, महान हैं देश की बेटियाँ!!











(सड़क पर गिर हुआ प्लास्टिक बैग/चिरकुट मिला जिसपर लिखी यह इबारतें छपीं थीं! न जाने किस महान आत्मा की यह रचना है जो आज मेरे काम आई!)


_श्री .