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Tuesday, March 19, 2013

रक्त-ख़त

रक्त-ख़त ``*The Last Supper with SMP*``

गुरु 'श्री तेगबहादुर जी' से क्षमा प्रार्थी हूँ.और यूँ मुझे शिक्षा देने के लिए आपको साधुवाद एवं धन्यवाद करता हूँ। और भविष्य में इन महान विभूतियों की सूक्तों के प्रति पूरी श्रद्धा रखते हुए, शपथ लेता हूँ: आइंदे कभी इनका (अनर्गल) उपयोग नहीं करूँगा!

मान्यवर, आप कहते हैं कि इन्टरनेट अथवा facebook पर आपके नाम पर हो रहे किसी भी कथन-लेखन कार्य से आपका कोई सरोकार नहीं है! साहब, यह गलत है। इस सारे खेल-तमाशे की कुछ-ना-कुछ जिम्मेवारी आपके ऊपर अस्वश्य ही आयद होती है। आपके नाम पर कई ग्रुप बने हैं, जिनमे आपके लिखे उन ग्रुपों के प्रति शुभकामना उस ग्रुप का मान बढ़ाती ही नहीं उन्हें घमंडी और उदंड भी बना रही है। कई-कई लोग हैं जिनके व्यवहार किसी गुंडा तत्व के सामान हैं, पर कुछ ऐसे भी लोग हैं जिनके सान्निध्य से सुख मिलता है। आपके फोटो, आपके हस्तलेख, आपके दस्तखत और आपके प्रशंसकों को लिखे आपके पत्रों का खुला प्रयोग हो रहा है; जो मैं नहीं करता। स्वयं आपके नाम से _आपके फोटो को 'प्रोफाइल फोटो' बनाकर ग्रुप बनाय गए हैं, जो साफ़-साफ़ उन पाठकों को छलावा और धोखा देता है, जो इनकी असलियत को नहीं पहचान कर निश्छल मन से उस वेबसाइट को आपका नीजी पेज समझ कर श्रद्धा से जुड़ते जा रहे हैं; पर जब असलियत का पता चलता है तो कुढ़ कर रह जाते हैं, स्वयं को छला हुआ पाते हैं!

Surendra Mohan Pathak
Surendra Mohan Pathak The Legend
Fans of Surendra Mohan Pathak
Fans of Sardar Surendra Singh Sohal a.k.a. Vimal kumar khanna. 
SUNIL KUMAR CHAKRABORTHY CHEIF REPORTER DAILY BLAST PRASHANSAK MANCH
Blast
Yaaran Naal Bahaaran..........etc. etc.  सब facebook पर हैं!
इन सबको आपकी छत्रछाया आपके द्वारा प्राप्त है! आप स्वयं नत्थी हुए पड़े हैं साहब! आपके महान व्यक्तित्व के आगे मेरी क्या विसात! मैं तो अब फेसबुक पर रहना भी नहीं चाहता। facebook का अपना अकाउंट ही मैंने बंद कर दिया। पर मेरे सच्चे शुभचिंतकों, मित्रों और परिवार की खातिर उनके आगामी सलाह का अनुसरण करते हुए फिर "Re-activate" करना पड़ा तो सबसे पहले उन कंटेंट्स की सफाई कर दूंगा, जिसमें आपकी जरा सी भी उपस्थिति होगी! और आगे ऐसा न हो इसकी शपथ लेता हूँ।

आपके घनघोर प्रशंसक ऐसे कार्य कर रहे हैं जो आपके हमप्याला - हमनिवाला होने का दम और दंभ भरते हैं! __ये ठीक है!? मैंने अपने अनुभवों की सूचना दे दी तो बे-ठीक!!? नत्थी नहीं होना चाहते तो पूरी तरह बंद करवाइये ये खेल-तमाशा! घोषणा कीजिये कि कोई आपके नाम को facebook / internet पर यूँ न उछाले! लेकिन ये नहीं करेंगे आप, करना चाहेंगे भी नहीं, क्योंकि सेलेब्रेटी फिगर हैं - लीजेंड हैं, जो हो रहा है आपके प्रिय बालकों की चुहुलबाजी है! अतः वे मन बहलावें और डंडा भाँजें! चलने दो क्या फर्क पड़ता है! पर मुझे कहेंगे- दूषेंगे, सिर्फ इसलिए कि किन्ही अज्ञात कारणों से आप मुझसे विरक्त हो चुके हैं। क्यों आपने परमिशन दी कि internet पर आपको यूज़ किया जाय?????

प्रशंसा जितनी मीठी और सुपाच्य होती है, आलोचना इसी वजह से कडवी और बदहजमी का कारण बन जाती है। बाज़ार से खरीदी वस्तु का, मोल दे कर खरीदा गया प्रोडक्ट अच्छा नहीं होगा तो शिकायत होगी ही। प्रोडक्ट अच्छा होगा तो वाहवाही मिलेगी ही। और एक ग्राहक, एक उपभोक्ता होने के नाते ऐसा करने का सभी को पूरा हक़ है। शानदार रेस्टुरेंट के खाने की शिकायत करने पर मैनेजमेंट क्षमाप्रार्थी होता है, नया फ्रेश खाना पेश करता है पर ये नहीं कहता कि आइन्दा इस रेस्टुरेंट में मत आना। वो रोक के दिखाये! नहीं रोक पायेगा! आपको एक आलोचना चुभ गई! मेरी साधना, मेरा सात्विक प्रेम, मेरी अगाध श्रद्धा नहीं सूझी, न ही कद्र हुई! देश-विदेश के घूमे लोग, रईसजादे ही आपको छू सकते हैं, मैं सुदूर प्रांत का वासी 'एक लेबर-क्लास आदमी' जिसने लगातार 35 वर्षों तक आपके चरणों में श्रद्धा के फूल चढ़ाता रहा _अछूत हो गया!? भगवान् भी भक्त के बिना अधूरे हैं। आप भी पाठकों - प्रशंसकों के बिना अधूरे हैं। मेरी आराधना, मेरी भक्ति में कहाँ ऐसा खोट आपको दिखा जो मैं "अहसान" करने जैसा भौंडा काम कर रहा हूँ? मैं लगातार शरणागत होता गया और आप लगातार कोड़े बरसाते गए! क्यों!? मैंने आपके हाथ जोड़े, पैरों पड़े, क्षमा मांगी, नाक रगड़े, रोया, बिलबिलाया, गिड़गिड़ाया, प्रार्थना, विनती, स्तुति सभी किया। बदले में आपने क्या प्रसाद दिया!? _
"भगवान् बदल लो!" ('_ किसी दुसरे लेखक के उपन्यास में मन लगाइये!)
"वाह प्रभु!"
आपकी लीला आप ही जानें जो अपरमपार है! साहब, 'अब' आप बहुत बड़े आदमी बन चुके हैं। आपकी सलाहियात और पहुँच बड़ी है। मेरे पत्रों के 'गलत' प्रयोग से आप मुझ पर जो ज़ुल्म चाहें ढा सकते हैं। इसके लिए आप क्या करेंगे मुझे मत बताइये, बस बिजली की तरह टूट पदिये और मुझे मेरे परवार सहित नेस्तनाबूत कर दीजिये! आइये! मार डालिए!!

आपको अभिजात्य वर्ग से प्रेम हो गया है और गरीब-गुरबा आपके लिए मात्र subject बन गए हैं! मात्र सब्जेक्ट! जिस तरह से आपने मेरा तिरस्कार करते हुए थूका है, सिर-माथे मालिक! बहुत बड़ी शख्शियत और बहुत बड़ा व्यक्तित्व है आपका जिसके वजन के नीचे मैं कुचला गया! मेरा जीवन, मेरे गीत, मेरे संगीत, मेरा उत्साह, मेरा उल्लास सभी पर आपने घातक वार किया है। मिथ्या लांछन लगा कर के! बधाई! आपका 'एक प्यार भरा बोल' इसे (इस विध्वंस को) बचा सकता था, लेकिन खेद है, समृद्धि आपके सिर चढ़ गई, और आप नीचे गिर गए!

"पूर्वांचल सिल्वर सिटी" के ऊंचे "टावर वन" वाले बाबू साहब! ऊपर से नीचे देखने पर हरेक चीज़ और इंसान भी  छोटा ही दिखता है! अब आप खुद को ही खलनायक बनाकर उपन्यास पेश कीजिये जिसका हीरो सदैव हारेगा, मरेगा और शैतान की जीत होगी! अब भारत माता की गोद में नहीं किसी विदेशी ज़मीन में खुशबू खोजिये! क्योंकि भारत में अधर्म, अत्याचार, अनाचार और दुर्व्यवहार आप जैसे महामहिमामय लोगों के कारण कभी ख़त्म नहीं होगी। माता हमेशा रोती रहेगी। और आप अपने उन चमचों के साथ 'अमरीकसिंह काला बिल्ला' पीते रहें, जो आपको "साहित्यकार!", साहित्यकार! साहित्यकार! कहकर खुश करते रहते हैं! हंह: साहित्यकार! छेह:! लानत है!

इंसान की जब बेइज्जती होती है, तब यदि उसे उस कारण का पता चलता है तो उस 'कारण' से सम्बंधित वस्तु या व्यक्ति से उसे स्वतः घृणा हो जाती है और यह घृणा उसके शरीर के साथ प्राणांत तक हमसफ़र बनी रहती है। कभी-कभी इस घृणा को वो इंसान विरासत में बाँट भी जाता है। यही आपको हो गया है। घृणा का रोग! पता नहीं क्यों? और कब और कैसे? मेरे लिए पिता तुल्य भ्राता को मुझसे घृणा हो गई! विरक्ति हो गई! क्यों? जिस तरह बड़े सम्मान के साथ आपने मुझे धिक्कारा और दुत्कारा है वैसा कोई आवारा कुत्ते के साथ भी नहीं करता। मुझे झूठी जानकारी दी गई थी कि आप बड़े सीधे-सादे, सरल ह्रदय और अत्यंत ही -ग्रेट-, महान एवं दयालु व्यक्ति हैं। महान शब्द बड़ा व्यापक है। तक़रीबन 35 वर्षों की संगत को जो जिस निर्दयिता के साथ आपने रौंदा है वह इन बातों से सर्वथा भिन्न है। और सिद्ध हुआ कि मुझे भ्रमित किया गया था। आप अपने प्रशंसकों से बड़े प्रेम भाव से मिलते हैं; _यह बात तो आपने स्वयं ही खारिज कर दी। दरअसल मैं स्वयं ही भ्रमित हो गया था, किसी और को क्यों दोष दूं। मेरे निश्छल प्रेम को और मेरे हालात को आपने Emotinal Blackmail समझ लिया यह आपकी सबसे बड़ी, गलत धारणा और अनुमान है। बेशक, हाँ! मैं आपके उपन्यासों का प्रशंसक और दीवाना हूँ, अतः आप मेरे हीरो बन गए, और मैं आपके दर्शनों के लिए लालायित हो गया। आप किरदार गढ़ते हैं, आपके किरदारनिगारी की क्षमता कमाल की है और निःसंदेह आप भारत देश में हिंदी पल्प फिक्शन Crime / Thriler और मिस्ट्री के एक अकेले अलमबरदार और बेमिसाल रचयिता हैं और यह भी सत्य है कि आपके बाद यह छेत्र और हिंदी जासूसी / थ्रिलर की दुनिया सूनी हो जाएगी और हजारों-लाखों के आंसू कभी नहीं सूखेंगे। लेकिन साहब खेद है कि आपका मुझसे दुर्व्यवहार, मेरे व्यक्तित्व का गलत आकलन, और इधर हाल के आपके तीन पत्र यह सिद्ध करतें हैं कि बजातेखुद आप अपने किरदारों में से किसी एक के सामान भी नहीं हैं। महान तो बड़े दूर की बात है। कम से कम मेरा ये भरम तो टूटा! अब मुझे आपके दर्शन की कोई लालसा नहीं! मेरा जीवन "+" (plus)SMP Novels खूब सफल है; लेकिन आपका जीवन! "-"(minus) एक प्रशंसक, एक भक्त, _असफल है। "हर किसी की ज़िन्दगी में गम और ख़ुशी दोनों होतें हैं। इस संसार में सभी चीज़ें हमारे हाथ में हों यह मुमकिन नहीं है। हमारी कोशिश ये होनी चाहिए कि सभी हालातों को अपनाये और ज़िन्दगी में आगे बढे। हमें ये समझना जरुरी है कि इश्वर दर्द सहने की ताक़त सभी को नहीं देता।" __ये आप ही के शब्द हैं। 

उपन्यास 'तीसरा कौन' में आपका फोटो फीचर छपा था और श्री महेंद्र शर्मा, जो अपना नाम facebook पर Shrma Mahendra के नाम से उपस्थित हैं, का एक आर्टिकल छपा था। जिसे पढ़कर मैं आपका अकिंचन भक्त बन गया। जबकि आपके उपन्यासों का दीवाना मैं उससे भी कई वर्षों पहले से था। सभी ने आपकी सराहना की हैं। आपसे मिल चुके सभी लोगों ने आपकी तारीफ में शेरों-शायरी, कविताएं लिखकर आपका यशोगान किया है। पर मेरे साथ ऐसी बेरुखी का क्या कारण है, साहब? मेरी सोच, मेरे विचार मेरे साथ भांड में जाएँ आपको क्या!! आपने तो मुझे खारिज कर दिया। आपके प्रति मेरी असीम श्रद्धा का खुलासा आपको "अहसान"(!) दिखता है, मेरे दुःख, मेरी पीड़ा आपको इमोशनल ब्लैकमेल लगते हैं। मैं मिलने की रट छोड़ दूं, क्योंकि इसमें मेरा 'हित' है! मैं आपसे मिलने की रट लगाय रहूँ तो मेरा 'अहित' होगा, साहब!?क्या करेंगे_ पीटेंगे? या मुझे किसी अत्याचार के हवाले कर देंगे! पुलिसिया डंडे का मजा चाखावेंगे! या मेरी जान ले लेंगे!? मुझे तो अभी से खौफ हो रहा है,... इस धमकी का कारण मालिक!? 

मैंने आपकी प्राइवेसी में कब 'घात' लगाईं, साहब!? सिर्फ मिलने की पवित्र तमन्ना थी, जिसे यदि आप स्वीकार करते तो सारी दिल्ली में कहीं भी, किसी भी स्थान पर मुझे आने को कहते! मात्र ५-मिनट भी समय दे देते! आपका क्या बिगड़ जाता? _कुछ नहीं। लेकिन मेरा तो सब कुछ संवंर जाता! सिर्फ पता पूछना (आग्रह, निवेदन) आपकी "प्राइवेसी" में "घात" कैसे हुआ, साहब!? आप एक शानदार मेजबान हैं, पर मैंने कभी किसी तरह की कोई ऐसी बात कही जो मेरी ऐसी मंशा को रेखांकित करता हो कि यह किसी की प्राइवेसी में घात है? कोई लालच किया? क्यों इतने रुष्ट हो गए आप!?

यह आम चर्चा है, जो आपके हमप्याला-हमनिवाला खासुलखासों ने ही प्रचारित किया है, नाहक किया है, बड़ाई लूटने और शाबाशी बटोरने के वाहियात मनसूबे के साथ किया किया है जिसे वो तमगों की तरह चमकाते चले जा रहे हैं, उन्हीं ने ये बताया कि आप अपने प्रशंसकों को 'घर' आने को निमंत्रित करते हैं! वे प्रूफ भी देते हैं। फोटो भी झलकते हैं। और लेख भी लिखते हैं! और यूँ बधाईयाँ भी बटोरते हैं। जब सभी आपसे मिल सकते हैं तो मैं क्यों नहीं, साहब!? मुझमे क्या कमी या खराबी पाई आपने!? मैंने तो स्वयं ऐसे किसी भी बेहुदे प्रदर्शन से सदा, सर्वथा परहेज रखा! फिर प्रत्याशा में पूछकर मैंने ऐसा क्या किया जो आम प्रशंसक नहीं करता!? सर्फ पता पूछकर मिलने की, अपने प्रिय लेखक से मिलने का निवेदन "सिर पर सवार" होकर प्राइवेसी में 'घात' करना कैसे हुआ साहब!? मेरी आराधना में कहाँ खोट है साहब!? क्या यही कि उसे मैंने आप पर जाहिर किया? आपके लगातार बेरुखी से कोड़े की फटकार-सी जलन जैसी मार का क्या कारण है, साहब? सिर्फ इसलिए कि मैं बेबाकी से अपना बचाव कर रहा हूँ? मुझसे ऐसी क्या गलती हुई? मुझसे स्थापित २२-२४ वर्षीय प्रेमभाव की अचानक अकालमृत्यु की क्या वजह हुई, मालिक? क्या कर दिया है मैंने!? मैंने तो अपना सर्वस्व आपको अर्पण कर रखा है, मेरा मोबाइल नंबर, मेरा E.mail ID, मेरे घर का पता_? फोन करते क्यूँ नहीं?? आपके घर का पता और मोबाईल नंबर इतना ही सीक्रेट है तो उसे चंद लोगों में भी क्यूँ बांटा? बांटा तो 'आम' कैसे हो गया!? जानने के बावजूद भी क्या मैंने कोई बेजा हरक़त की?? कभी फोन लगाया?? कभी घर में घुसने की कोशिश की? कई मित्रों ने ऑफर दिया कि गुंडों के क्यूँ मुँह लगते हो, पाठक सर का पता और मोबाइल नंबर मुझसे ले लो। पर मैंने _मैंने स्वयं मना किया कि देना होगा तो 'सर' स्वयं देंगे। आपने दिया नहीं, मित्रों से न मैंने पूछा, न उनके बताये मैंने जाना। फिर आपके घर का पता 'आम' कैसे हो गया!? इसके बावजूद भी मैंने कोई बेजा हरक़त की जो 'प्राइवेसी' में 'घात' कहलाती हों!? आपका पता पूछकर आपके दर्शनों की इच्छा की प्रार्थना आपकी प्राइवेसी में -'घात-' कैसे हो गई? आप सीधे कहते कि श्रीकांत, तुम मेरे घर न आकर फलाना जगह पर मिलो; तो मैं मना कर सकता? _नहीं। सर के बल हाथों में फूल, और आँखों में आंसू लिए मैं हाजिर हो जाता। वह ५ पांच मिनट मुझे मेरे लिए पूरे जीवन का संबल बन जाता। पर आप मुझसे नहीं मिलना चाहते। "याद" करके संतोष को कहते हैं! क्यों साहब, जब सभी आपसे मिल सकते हैं तो मैं क्यों नहीं मिल सकता? बताओ न साहब! क्या गुनाह है मेरा? मेरी हंसी-ख़ुशी-उत्साह-उल्लास-उत्कर्ष को यूँ क़त्ल कर देने का आपकी इस बर्बरता का क्या कारण है? २२-२४ सालों के आपके और मेरे परस्पर प्रेम को किस कलमुंहे की नज़र लग गई, मालिक!? आपको नहीं पता आपके इश्क में मैंने क्या खोया, जानना भी नहीं चाहते! कितने बेरहम हैं आप! आपके प्यार में पागल, मुझे आपके मारे मेरी मुस्कान मर गई! _आपको कोई फर्क नहीं। आपके दीदार का दीवाना मैंने दुश्मनी और अपमान की परवाह नहीं की! _आपको कोई मतलब नहीं! आपके एक प्यार भरे हाथ के स्पर्श की लालसा में मैंने न जाने कितने बहुमूल्य पलों की आहूति दे दी! _आपको कोई परवाह नहीं! आपके सुखद सान्निध्य के लिए लालायित, तरसते मैंने आपके बुलावे को खुली आँखों से कई महीने, दिन, रात गंवा दिए! _आपको कोई सरोकार नहीं! सिर्फ चमचे-बेलचे ही आपको रास आते हैं। जो आपके मुँह पर आपका गुणगान करते हैं और सुन-सुनकर आप, पुलकित हो कर उनकी पीठ ठोकते हैं। सुनील पैदा कर सकते हैं, पर सुनील बनने की काबिलियत से महरूम हैं, रमाकांत तो बहुत दूर की बात है! जीतसिंह जैसे फकीरों की फकीरी को विषय बनाना शौक है! _पर गरीबों, फकीरों को अपनाना आपकी तौहीन है। विमल जैसे किरदार गढ़कर पैसे पीट सकते हैं, पर उसके जैसे उच्च विचार और आचरण से बिकुल उलट हैं_ एक पाखंडी हैं! आप नहीं जानना चाहते की मैंने क्या किया सो नहीं बताऊंगा, पर जो मैंने किया और जो गंवाया है, उसके खामियाजे और उलाहने से बचे बिना आप इस फानी दुनिया से रुखसत नहीं हो सकते। आपकी आखिरी सांस में भी आपके इस -खालिस प्रशंसक- के आकस्मिक मौत की हाय लगी होगी। और आपको कभी चैन नहीं मिलेगा। कभी-भी चैन नहीं मिलेगा!!

बंद कीजिये और करवाइये facebook का खेल-तमाशा, यदि नत्थी नहीं होकर गैरतमंद बने रहना चाहते हैं तो! ताकि सबको सबक मिले और आप सहित अन्य लोगों को भी थोडा सुकून मिल सके। कलम-दवातिए हैं तो वही बने रहिये इसी में सबका भला होगा। मैं एक चित्रकार हूँ। प्रकृति ने -Mother Nature - ने मुझे अपने इस आशीर्वाद से नवाजा है। मैंने सोचा था, निर्णय किया था कि 'सर' जब बुलाएँगे तब इनमे से कुछ पेंटिंग्स मैं आपको भेंट करूँगा। पर अब नहीं। क्योंकि आप स्वयं इतने सम्मानित और महिमामंडित हैं कि 'और' सम्मान की आपको जरूरत नहीं। आपने मुझे इस काबिल छोड़ा ही नहीं कि मैं आपको इनके काबिल समझने की हिम्मत भी कर सकूँ। आपने मुझे आपही के प्रति अच्छा बने रहने के काबिल नहीं छोड़ा!

अब जब हम एक-दुसरे के प्रति अच्छे नहीं रहे तो मेरे पास आपकी रचनाओं (उपन्यासों) [More than 200] का क्या काम!? ये सभी, जिसमे अभी तक एक पतितपावन खुदा की तरह आपका 'वास' था, _वीरान हो गए, खंडहर होकर आपको श्राप देते रहेंगे! और अब धिक्कर-दुत्कार-तिरस्कार-नफरत-हिकारत-घृणा और शाप तो इनके पन्ने-पन्ने आपको देंगे जो आपकी झूठी "प्राइवेसी" की भेंट चढ़ गए! मेरी आत्मा देगी। और वे लाखों प्रशंसकों की धारणाएं देंगी जिन्हें छलावे में रखकर आप अब तक बधाईयाँ और बड़ाईयाँ बटोरते आए हैं! आप एक ररूखे, Rude व्यवहार वाले, खुन्दकी व्यक्ति में तब्दील हो चुके हैं। समृद्धि ने आपको अपने प्रशंसकों से दूर कर दिया। शारीरिक अक्षमता के कारण आपको सुनने में कठिनाई हो गई है, लेकिन घमंड और पूर्वाग्रह में आप अंधे भी हो गए हैं! आप समझते हैं कि अब आपके पास खोने के लिए कुछ नहीं हैं, क्योंकि आपके राजसूय-यज्ञ का घोड़ा आपके अपने अंगने में ही घूम कर वापस आ गया है। लेकिन अभी-अभी आपने अपने प्रिय प्रशंसक भ्राता, एक भक्त, एक निर्दोष भाई को खोया है! चकाचौंध से बौराय हुए 'प्रभु' आपको न इसका भान है, न भय है।

आपकी प्राइवेसी आपको मुबारक। लेकिन जरा मालुम करने की कोशिश तो कीजिये कि किसने आपके , नोयडा का (फुल एड्रेस; जान बूझकर  यहाँ नहीं लिखा गया!) पता और आपका मोबाइल नंबर (जान बूझकर यहाँ नहीं लिखा गया) को प्रकाशित कर दिया!!? मेरा दावा है कि इन्टरनेट पर यह किसी अति-उत्साही आपके हमप्याला, हमनिवाला ने ही यह "अत्यंत गोपनीय" बात 'पब्लिक' कर दी! जबतक वो इसे हटाता, यह कई-कई लोगों में शेयर हो गया। लेकिन फिर भी मैंने इसे किसी के साथ न शेयर किया, न बताया, न बताऊंगा! न मैंने आपके मोबाइल पर फोन लगाया, न आपके घर आया, ना अब आ सकूँगा। अब आप घर बदलिए, मोबाइल नंबर बदलिए, या अपना कलेजा भून कर खाइये, आपकी मर्जी। न आप लिजेंड हैं, न आप खुदा हैं। न ही आप इबादत और आराधना के लायक हैं। आपने मुझे जिस कदर से नीचा दिखाया है और मेरी श्रद्धा को लात मारी है, उसके आगे इस पत्र में अंकित मेरी भड़ास कहीं नहीं ठहरती। फिरभी _अंतिम प्रणाम!

मैं जिस दुनिया में जा रहा हूँ वहाँ खंडहर हो चुकी आपकी खोखरी वाणी युक्त, समस्त उपन्यास भी जा रहे हैं। यही मेरे सच्चे मित्र, सखी-सहेली, और यार हैं जो एक साथ नया जनम लेकर नए सिरे से आपको अगले जनम में भी कोसते रहेंगे। श्रीकांत के परिवार और बच्चों और इस गरीब की हाय से बचना, मालको!

अब चैन से रहिये!  
पत्रोत्तर मत दीजियेगा।

मैं अपने स्वर्गीय बाबूजी की शरण लेता हूँ, जिनका ह्रदय इतना विशाल है की शायद वो आपको उनके पुत्र की आपके दिए तकलीफों, दुःख और खून को भी माफ़ कर देंगे। मैं बाबूजी से कहूँगा कि वे आपको कुछ न कहें।

अब मैं आपको स्याही का एक कतरा भी नहीं दूंगा।

समाप्त.

PS: घर का पता आम होते हुए भी, मेरी जानकारी के बावजूद, यह पत्र आपके पोस्ट बॉक्स पर ही भेजा जाता है। ताकि "प्राइवेसी" में -घात- न हो!

--इति--
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मैं मौजूद हूँ! अपने कर्तव्य के लिए! अपनी जिम्मेवारियों के लिए! अपने प्यारे परिवार के लिए! तब तक , जब तक मैं खुद न चाहूं कि चला जाऊं! 'इस' वाहियात शख्श के लिए तो एक कुत्ता भी अपनी जान नहीं देगा! मैं तो खुद 'बाबूजी' हूँ! मैं इस कृतघ्न से इतनी नफरत नहीं करता, जितना मैं अपने परिवार से मुहब्बत करता हूँ!