Powered By Blogger

Sunday, March 3, 2013

हादसा होते-होते बचा

आज -[02/03/2013]- एक जानलेवा हादसा होते-होते बचा!

मेरे छोटे बेटे की आज से दस-वीं CBSE बोर्ड की परीक्षा शुरू हो गई, उसे एग्जाम सेंटर (जवाहर नवोदय बिद्यालय, -जोगना, पोस्ट-थाना: सेन्हा, जिला: लोहरदगा) पहुंचा कर मैं मेरी पत्नी के साथ आराम से मंथर गति से अपनी गाडी चलाता घर लौट रहा था कि अचानक पीछे से आती पत्थल से लोड एक बड़ी ट्रक ने बिना हॉर्न दिए मुझसे आगे निकलना चाहा। उसकी आतुरता देखकर मैं और ज्यादा बाएं हो गया, अब मैं और ज्यादा बाए नहीं हो सकता था, उस ट्रक के ड्राईवर ने अपनी भारी ट्रक को मेरी बगल से इतना सटाते हुए बाएँ काटा (जबकि पूरी चौड़ाई वाली सड़क उस जैसे और एक ट्रक के लिए भी काफी से ज्यादा खाली थी, खुली थी) _कि मैंने दहशत से अपनी गाडी नीचे फूटपाथ पर उतारते हुए काफी बाएं हो गया फिर भी ट्रक ने मेरी गाडी के बाहरी रियरव्यू-मिरर को जोर से ठोका, मेरी गाडी के अगले हिस्से (ड्राइवर्स साइड) को धकियाते रगड़ते हमें खतरनाक ढंग से दहलाते, हिचकोले देते -सायं- से निकला, ट्रक की साइड मेरी गाडी से जोर की आवाज़ से रगड़ खाई! उसके खलासी ने अपनी बायीं खिड़की से सर निकालकर दांत निपोर कर हमारी ओर देखा और फिर ट्रक सरपट भाग निकली! मेरी गाडी बुरी तरह डगमगाई, उसकी दिशा पलट गई! वाइफ़ दहशत से चीखी! जब गाडी संभली और मैंने पाया की वाइफ़ ठीक हैं, तब मैंने उतर कर गाडी का मुआयना किया, कोई ख़ास नुक्सान नहीं हुआ था
...लेकिन जो दुर्दांत हरकत ट्रक वाले ने की थी, उसका जबाब देने के लिए मैंने तेज़ी से ट्रक का 1-कि.मी. तक पीछा कर उसके आगे होकर गाडी सड़क के बीचोंबीच तिरछी खड़ी कर दी! उतर कर ट्रक ड्राईवर के पास गया और उससे हाथ जोड़कर नीचे उतरने को कहा! ट्रक ड्राईवर एक 20-22 वर्ष का आदिवासी छोकरा था! वो ढीठ बना दरवाजा अन्दर से लॉक कर ट्रक के भीतर ही बैठा रहा। ज़ाहिर है कि उसे यही हिदायत दी गई थी। तबतक दोनों तरफ से ट्रैफिक की गाड़ियों और तमाशबीनों का जमावड़ा लग गया! सबको ऐतराज़ था की -'अजी ऐ! 'तुम' अपना तमाशा साइड होकर करो, बीच रोड से गाडी हटाव!' लेकिन मेरी दृढ़ता तबतक जिद्द में बदल गई थी, घर से हड़बड़ी में चलने के कारण मेरे पास मेरा मोबाइल तक नहीं था, लिखने के लिए कोई कलम तक नहीं था, फिर भी मैंने एक स्कूल के दिनों के एक साथी को भीड़ में देखा और उससे कहा कि वो मेरे घर (7 किमी दूर) सूचना दे दे! मामले के निपटारे के लिए ट्रक से जो आदिवासी व्यक्ति उतरा उसने खुद को ट्रक का मालिक बताया मेरे उग्र तेवर लेकिन शालीन भाषा और जोरदार तरीके से अपनी बात रखने और कहने के ढंग का प्रभाव सभी पर पड़ा! मैंने और भी काफी सख्ती की! लेकिन मेरे भाई ने आकर मुझे शांत कराया! ट्रक वाले की गलती थी कि वो मेरी गाडी को गलत तरीके से और बदमाशी से मुझे डराते, धक्का मारा और फिर रुकने के स्थान पर भागने की कोशिश की! भीड़ की लताड़ सुनने के बाद ट्रक के 'कथित' मालिक ने सॉरी बोला! ...भाई में भी मुझे शांत रहने को कहा, कि किसी नेता जी की गाडी है, "मैं ज्यदा लफडा" न करूँ!! लो जी मैं हो गया शांत। जाओ जी, जाकर किसी और की जान से खेलो! ..खेलते रहो, कौन रोकने वाला है ..........

दोषी ट्रक का नंबर है: JH-08B 7638

शशि ने फ़ोन द्वारा इसके 'असली' मालिक से बातकर शिकायत की, फिर मुझसे भी बात हुई। उसने खेद प्रकट किया और माफ़ी मांगी। लेकिन ड्राईवर को उसने क्या सबक सिखाया ये नहीं बताया। मेरी पत्नी की जगह यदि मेरे साथ कोई और लोग या दुसरे नौजवानों का जत्था होता तो झगडा बहुत बढ़ जाता। ट्रक के शीशे भी फूट सकते थे। थाना-पुलिस ... भी हो जाता। मैंने ट्रक के कथित 'मालिक' का मोबाइल उससे लेकर अपने पास तबतक रखा जबतक उसने गलती नहीं मानी और सॉरी नहीं बोला। आखिर ट्रक में, ड्राईवर और खलासी के साथ वो भी बैठा था, ट्रक में सिर्फ एक ही कम्पार्टमेंट/केबिन है, उसने ड्राईवर को ट्रक रोकने को क्यूँ नहीं कहा? ट्रक रुकवाई क्यों नहीं? हमारी गाडी को धक्का मार कर भागे क्यूँ? इन सबके जबाब में वह उल्लू सा नक्शा ताने रहा, उसे सिर्फ एक ही फ़िक्र थी-'सर, हमरा मोबाइल ...; सर, हमरा मोबाइल ...!' बीच-बचाव में एक व्यक्ति सामने आये वो 'थाने' से सम्बद्ध और ट्रक वाले और मेरे भाई के वाकिफकार थे, उन्होंने भी ट्रक वाले से गलती स्वीकार करने को कहा, कि वो (कथित ट्रक मालिक) यदि, -यदि- चाहता तो ड्राईवर को डांट कर ट्रक रुकवा सकता था, जो उसने नहीं किया। ये इनकी (मेरी) शराफत है कि मैं उसे (बिना कोई हर्जाना वसूले) सस्ते में छोड़ रहा हूँ! मैंने मोबाइल लौटा दिया, और घर वापस। ... ऐसे लोगों को थाना-पुलिस से रोज का नाता है, ये केस-फौजदारी इनके रोज़मर्रा की दिनचर्या है, ये कभी नहीं सुधरेंगे। लेकिन हमारे पास ऐसे झगड़ों और थाना-पुलिस के लिए कहाँ गुंजाइश है? मेरे कानूनी शिकायत का कोई भी परिणाम नहीं निकलता, सो 'कोम्प्रोमाईज़' ही -असहाय- का आखिरी हल होता है ...

ट्रक के असली मालिक से बात होने पर (शशि के विवश करने पर मैंने उसे अपना 'पूरा' परिचय दिया जो गैर जरूरी था।) उसने वादा किया है कि वो मुझसे जरूर मिलेगा।

_श्री .