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Sunday, January 6, 2013

सब्र और संतोष:

बिजली की आँख-मिचौली के बीच : कुछ और ...

सब्र और संतोष:

मैंने (अपने मित्र) मास्टर साहब से कहा -"सर, अतुल को अब आपकी सहायता की ज़रुरत है। उसके 10वीं बोर्ड की परीक्षा है। पहले आपने कहा था कि अभी बहुत छोटा है, छोटी क्लास का विद्यार्थी है, 10वीं में देखेंगे। सर वो समय आ गया है। मेरा निवेदन है कि अब आप उसे अपनी छत्रछाया में ले लेने की कृपा कीजिये ताकि आपकी मदद से वो भी अपने बड़े भाइयों का अनुकरण करते हुए अपना करियर खुद संवार सके।"

मास्टर साहब सिर्फ हँसे।

मैंने फिर-से अपना निवेदन दुहराया। तब वे चुप हो गए। उनकी मुद्रा गंभीर हो गई, तो मुझे आशंका होने लगी कि कहीं मास्टर साहब नाराज़ तो नहीं हो गए!

मैंने फिर प्रयास किया -"सर ..."

अचानक मास्टर साहब मुझ पर भड़के -" तिवारी जी थोडा सबर से काम लीजिये, दो-दो बेटे तो आपके आगे निकल गए इससे आपको संतोष नहीं होता? ज्यादा लालच ठीक नहीं है।"


".....................-------!!!?"



मुझे सब्र और संतोष होता पर खेद है कि यह कोई लतीफा नहीं है।
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_श्री .