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Saturday, June 29, 2013

"दुर्भिक्ष!" की भूमिका

          मैं, श्रीकांत तिवारी, अपनी यात्रा वृत्तांत लिख रहा हूँ! यह एक बड़ा प्रोजेक्ट है! और मैं इसे पूरी तवज्जो दे रहा हूँ! कलम से ड्राफ्ट लिखकर 15/06/13 से ही अब तक ढेर लिख चूका हूँ! इसमें उत्तराखंड की त्रासदी की कोई भी नाजायज एडवांटेज लिए बगैर मैं एक "राम कथा" लिखने जा रहा हूँ, जो मर्यादापुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम की कथा नहीं मेरे अपने राम an another super human being!! की कहानी कहने का प्रयास किया जा रहा है, जिसे पढने के लिए कोई बाध्य नहीं! facebook कोई मैच का मैदान या परीक्षा कक्ष नहीं है और ना ही मैंने कोई इम्तिहान पास करने के लिए या तारीफें और अनावश्यक आकर्षण बटोरने के लिए ज्वाइन किया है! मेरी पोस्ट्स को तो मेरे अपने परिवार वाले कोई तवज्जो नहीं देते ना ही मैंने कभी उन्हें अपने पोस्ट्स पर Like & comments के लिए विवश किया है, ना मैं ऐसे छिछोरेपन पर ध्यान देता हूँ! ना मैं कोई लेखक हूँ ना मैं क्रिटिक्स लिखता हूँ ना किसी विवाद में टांग घुसेड़ता हूँ! मेरा सीधा प्रयास सिर्फ मैत्री है; जिसके लिए मैं खुद सबके लिए जी-जान से हाज़िर हूँ! मेरी यात्रा-वृत्तांत को लिखने और छपवाने के मेरे अपने साधन बेशुमार हैं! और मेरे बच्चे मेरे लेख और ब्लॉग को एक किताब के रूप में ढालने के लिए प्रतिबद्ध हैं! जिसका कोई प्रचार-प्रसार-वितरण और विक्रय का उद्देश्य कतई नहीं होगा! यह एक पारिवारिक रिकोर्ड बुक होगी, जिसमे तमाम FACTS भूतपूर्व - और वर्त्तमान के सन्दर्भ में होंगे! मुझे फिल्म देखने, गाने सुनने, घूमने-फिरने, लिखने-पढने, चित्रकारी, फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी, कंप्यूटर फोटो एडिटिंग का शौक है , कारोबार नहीं! कौन पढता है, नहीं पढता, पर ध्यान दिए बगैर मैं अपनी धुन में मगन अपनी राह का अकेला ऐसा राही हूँ जिसे कदम उठाते ही स्वतः दिशा-ज्ञान हो जाता है! मेरी मंजिल खुद खुश रहने की है, किसी को दुखी करने की नहीं! पर यदि दुश्मनी भी हो जाय तो मुझे परवाह नहीं! और अपनी ख़ुशी से अपनी मर्जी से अपनी ख़ुशी जिसे तुलसीदास जी ने "स्वान्तःसुखाय" की संज्ञा दी है, ऐन वही मेरा ध्येय है! मेरे "राम" की कहानी, मेरी यात्रा वृत्तांत में भोजन में नमक की तरह घुली होगी! मेरी यात्रा वृत्तांत की कहानी बहु-आयामी होगी और कई तरह के शाब्दिक रंगों में रंगी होगी! किसी को शॉकिंग, तो किसी के लिए सच और सच्चाई पर Embarrassing होगी पर Vulgar कदापि नहीं होगी! मेरी कहानी सवाल उठाएगी, चुनौती देगी और ललकारेगी! और यह एक धारावाहिक की तरह (मुझे अभी नहीं पता) कई भागों में होगी! facebook पर मेरे अपने timeline पर पब्लिश यह कहानी मेरे परिवार सहित मेरे दोस्तों के लिए होगी, fb-friends के लिए होगी ही - पर, फिर कहता हूँ, इसे पढना सबकी अपनी-अपनी मर्ज़ी की बात होगी! जिसके Like(s) & Comments से मेरा कोई लेना-देना नहीं होगा! ना ही मैं किसी प्रश्न का उत्तर दूंगा! कोई फोटो संलग्न नहीं करूँगा! उत्तराखंड-केदारनाथ त्रासदी की चर्चा मैं पूरी निष्पक्षता, बेबाकी और दिलेरी से करूँगा! जलियांवालाबाग के अनुभव, स्वर्ण-मंदिर की सैर, वैष्णव देवी-यात्रा, हरिद्वार, ऋषिकेश की चर्चा में मेरे शब्दों से दृश्य प्रस्तुत करने का प्रयास करूँगा! कोई फोटो यदि मुझे पोस्ट करनी होगी तो वो अलग से पोस्ट की जायेगी, यात्रा-वृत्तांत के साथ नहीं! मेरी कहानी के "राम" की कथा लिखना मुझे मेरे मरने से पहले लिखकर मेरे बच्चों को दे जाना अनिवार्य है वरना ये कई ऐतिहासिक सच्चाइयों से वंचित रह जायेंगे! मेरी यात्रा-वृत्तांत का नाम है - "दुर्भिक्ष!"
कौन है यह 'राम?'
चंद शब्दों में ही स्पष्ट हो जाएगा! कोई सस्पेंस नहीं - बस राम की कहानी! और मेरे सवाल !
तो आईये~
सुस्वागतम 
मैं पहले भाग के साथ, तुरंत 
आता हूँ
_श्री . 

उठिए ...... असंभव के विरुद्ध :

उठिए, सारे संसार को दिखाएं कि हम भारतीय कितने जीवट वाले हैं!
 
'घाटी इतनी गहरी कि कुछ समझ में ना आए, पहाड़ी इतनी सीधी, सपाट और चिकनी कि कुछ टिक ना पाए, सबकुछ इतना संकरा कि सांस लेना दूभर - किन्तु इंसानियत और कर्तव्य की भावना भरे हमारे सैनिक वहाँ उतर ही गए!' _ गौरीकुंड और रामबाड़ा के बीच दुरूह जंगलचेट्टी में फंसे कोई एक हज़ार लोगों को बचाने वाले जवानों पर नाज़ करते हुए - एयर मार्शल एस. बी. देव .
 
वो छोटी सी बच्ची बढती बाढ़ में बहने को थी! किन्तु एक बुज़ुर्ग की कमज़ोर बांहों ने उसे मजबूती से  लिया! कोई रास्ता न था! बस, इंसानियत!
वो दो दिन से भूखा-प्यासा! भारी बारिश में बस जिंदा बचा था! परिवार लापता! इसलिए हिम्मत भी गायब! पानी की बोतल देख लपका! "सौ रुपये!", निर्दयी मांग उठी! अरे, इनसे पैसे, वो भी ऐसी लूट? "मेरा क्या रिश्ता है?" - हैवानियत!!
उत्तराखंड त्रासदी हमारे देश की सर्वाधिक बड़ी, सबसे दर्दनाक और सबको हिलाकर रख देनेवाली प्राकृतिक आपदा है! इसमें सरकारों का भी दोष, गंगा में आये उफान की तरह उभर-उभर सामने आ गया है!
किन्तु एक निर्णय का समय भी आ गया है! या तो हम दोष ढूंढना शुरू करें ..., वो तो हम कर ही रहे हैं! कहने का आशय यह है कि या तो हम बस "यह भूल हुई, उन्होंने ऐसा गलत किया, यह हैवानियत है" जैसी बातों में उलझें रहें, ...बहस करते रहें, ...आक्रमण करते रहें! ...या हम अब सब कुछ ठीक कैसे हो, जिंदगियां कैसे बचें, आगे ऐसा न हो - इनके उपाय करें!
निश्चित ही हम जो यात्री फंसे हैं, उन्हें बचाना चाहेंगे! जो इन चार धामों में और आसपास के गावों में रहते हैं, उनकी सहायता करना चाहेंगे! उन जांबाजों को सलाम करना चाहेंगे, जो जान की बाज़ी लगाकर, जान देकर, हमारे प्रियजनों को बचा रहे है!
हम भारतीय हैं - एकजुट हो जाएं तो विश्व में बेजोड़! हमारी सभ्यता ही इंसानियत का आधार है! और संवेदना हमारी सभ्यता का मूलाधार! हम जीवट के हैं! किन्तु इस समय हम बंट गए हैं! हमारा ध्यान बांटा जा रहा है! कभी हमें उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की गलतियाँ गिनाई जा रही हैं तो कभी गुजरात के मुख्यमंत्री की! दोनों नेता गलत हैं भी! सभी 'बड़े-बड़े', इस भयानक विपदा पर घृणित राजनीति कर भी रहे हैं! किन्तु हम क्यों उन्हें और सम्बंधित छिड़ी बहस पर ध्यान दें? हम क्यों उन विवादों में उलझें जो -"बुद्धिजीवी"- चला रहे हैं? _ कि चार धाम एक बड़ा भारी सिर्फ पैसे कमाने का कारोबार बन गए हैं, ...कि श्रद्धालु भी विकराल गन्दगी फैलाकर पर्यावरण नष्ट कर रहे हैं, ...कि फेंकी हुई एक-एक बोतल भविष्य के खतरे को तैयार कर रही है, ...कि बच्चों को लेकर क्यूँ जाया जाता है, ...कि केवल गरीब मर रहे हैं, ...कि हम भारतीय तो हैं ही ऐसे, ...! जबरदस्त बहस छिड़ी हुई है! बहुत आपत्तिजनक है! अनजाने में हम किसी न किसी रूप से इसमें शामिल हो गए हैं!
इनके काट्य तर्क भी ढेरों चल रहे हैं! बोतल फेंकने से कोई बाढ़ नहीं आ सकती! बांधों के हिस्से छह-सात मंजिला जितने विशालकाय हैं! बोतलें तो चुटकियों में कुचल जाती है! बच्चों को क्यों नहीं ले जायेंगे? कहाँ रख जाएँ उन्हें? गलती सरकार की है! और तीन दिनों तक तो वहां के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा मानों सो रहे थे! इन सब पर भी तीखी बहस है - जो सरकार ने खड़ी की है! कि बादल फटने, बाढ़ आने, अति वर्षा होने या भूकंप आने में सरकार की क्या गलती? हर बात में सरकार?
हम भारतीय हैं ही ऐसे - यह डरावना झूंठ फैलाया जा रहा है! फ़ैल रहा है! इसे झुठलाना ही होगा! हम भारतीय कैसे हैं - यह संसार के सामने लाना होगा!
भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) के जांबाज सर्वेश कुमार जैसे हैं हम भारतीय! सात साल पहले दूल्हा बने थे! गौरीकुंड में फंसे यात्रियों की जान बचाने पहुंचे थे! जान दे दी! उस व्यापारी रमेश पुरोहित की भारतीयता देखिये! एक हाथ में बच्ची! दूसरा हाथ गरजती लहरों से मुकाबला करता रहा! बाहर फेंक कर बचा दी जान नन्ही की! अपनी ज़िन्दगी जाने दी! सार्थक कर दिया जीवन!
गुजरात भूकंप के उस मुस्तफा की माँ जैसी है भारतीयता! 2001 की उस दारुण दहला देने वाली आपदा में वह उस बच्चे को खुद मरते-मरते भी, अपने रक्त की बूँद से जिंदा रखने में सफल हुई थी! पता नहीं वह उस बच्चे की माँ थी भी या नहीं!
मोरवी की बाढ़ में भी दिखा था सच्चा भारतीय! कुछ नाम रहा होगा! उसने बताया नहीं! पत्रकार तक पता न लगा सके! बस, न जाने किसके बच्चे को अपने पैरों के बंधन में जकड़े किनारा ढूंढता रहा! बलिदान दे गया! जीवनदान दे गया!
विंग-कमांडर डेरिल केस्टलीनो हैं भारतीय! 7-वर्षीय बेटी एंजेलिना बड़ी होकर गर्व करेगी! गौरव गाथा सुनाएगी कि कैसे उसके पापा रूद्रतांडव के शिकार हुए श्रद्धालुओं को ज़िन्दगी देने गए थे! आंसू होंगे, किन्तु एंजेलिना के पापा की वीरता सार विश्व याद करेगा!
आपदा में भूलों को ठीक करने के लिए उनका - उन भूलों का - पता लगाना भी अनिवार्य है! बहस भी आवश्यक! इतनी तबाही के दोषी नेतृत्व - सरकार, नेता, अफसर, पूंजीपति, भ्रष्ट गंठजोड़ हर तरह के दोषियों को दंड मिलना भी उतना ही अनिवार्य और महत्वपूर्ण! किन्तु अभी समय बचाव का है! इलाज़ का है! बसाने का है! लोगों की जिंदगियों में कुछ करने का है! इसके लिए कुछ कर गुजरना होगा! जिन्हें दंड देना है, उनके लिए बाद में भी समय निकाला जा सकता है! वैसे भी इस समय बहस में उलझने से कौन सी उन्हें कोई सज़ा मिल जायेगी? केन्द्रीय मंत्रीगण, मुख्यमंत्री, नेतागण तो यूँ भी चुनाव में हटाय जा सकते हैं / हटाय जायेंगे! किन्तु दोषी अफसरों का तो हम कुछ भी न कर पायेंगे! बेबसी!
 
आपदाएं बिखेर देती हैं हमें! तोड़ देतीं हैं सबकुछ! ऐसे में कुछ उजला, कुछ सकारात्मक सोचना असंभव है! किन्तु सोचना ही होगा! क्योंकि एक आशा, समूचे संसार को बना सकती है! एक, केवल एक विचार! एक विचार ही तो था जिसने विश्वयुद्ध के बाद जीवन खिलाया! अन्यथा लाखों लोग मारे जा चुके थे! एक विचार ही तो था जिसने चीन का पुनर्निर्माण कर दिया - वरना 1931 की येलो रिवर की बाढ़ कोई 37-लाख लोगों को लील गई थी! हमारा अपना कलकत्ता 1737 में ऐसे चक्रवात में तबाह हो गया था कि त्रासदी पढ़कर कोई भी जड़ हो जाए! 1943 के आकाल से पूरा बंगाल बर्बाद हो गया था! बस, एक विचार ही तो था .... ज़िन्दगी सहेजने का! समेटने का! संवारने का!
 
मौत तो जन्म के साथ ही तय हो गई थी! जीवट तो जीवन में है! यही दिखाना होगा! हमसभी को! मिलजुलकर!
और इस समय भगवान् को भूल जाएँ! सबकुछ इंसान को करना है!
जय हिन्द!
 
साक्षी- श्रीकांत तिवारी ...उत्तराखंड से 
(कल्पेश याग्निक के साथ)

Monday, June 10, 2013

आसनसोल इंजीनियरिंग कॉलेज (AEC _W.B.) से जिम्मी की विदाई और घर वापसी :

"...जिम्मी की B.Tech. की पढ़ाई पूरी हुई!
अब उसे वापस घर लौटना है!
अपने जीवन के बहुमूल्य 4-वर्ष एक स्थान पर, गुजारने के बाद, ...उन सभी को पीछे छोड़कर,  ...जो लगातार इन चार वर्षों में अपने 'अपनों' से कहीं ज्यादा "ख़ास" हो गए हैं, ...और जो जान रहे हैं कि अब के बिछड़े ना जाने फिर कब मिलें, ...मिलेंगे भी या नहीं? कॉलेज में पहले ही इन्होंने, और इन-सब के लिए सभी जूनियर्स ने मिलकर एक फेयरवेल पार्टी कर ली है, जिसमे सभी ने एक उत्सव सा, उल्लास भरा समय बिताया, ...एक-दूजे से गले मिलते और सबको शुभकामनाएं देते, ...हँसते-गाते नाचते-झूमते सभी-ने सभी की बुशर्ट (College Uniform, Shirt) पर संदेशे-बधाईयाँ-शुभकामना सहित अपने-अपने हस्ताक्षर, नाम-पते और कांटेक्ट नम्बर्स कई रंग-बिरंगी स्याहियों वाली कलमों से लिख डालीं! ...अब यह शर्ट कभी नहीं धुलेगी! बल्कि एक यादगार बनकर सदैव इनके पास रहेगी! इस फेयरवेल पार्टी की हंसी थमने में थोडा वक़्त लगा, ...फिर हंसी थमी, और ठिठककर एक उदास-सी खामोशी में सूखते पसीने की ठण्ड में बर्फ की तरह जम कर सबके हलक में अटक-सी गई; ...फिर जब ये बर्फ पिघली तो आँखों से अश्रुधारा बनकर फुट पड़ी, जिसका आवेग सबके अपने-अपने मनःस्थिति के मुताबिक था; ...पर था। निर्मल और निश्छल, पवित्र और पावन! ..... एकदूसरे को अपने अंक में भरते ये नौजवान,.... जो देशहित के हेतु नवनिर्माण में अपना-अपना योगदान देने के लिए, अब बिछड़ रहे हैं, कई कई यादों की झोलियों को अपने ह्रदय में लिए एक-दूजे को चूमते और नए वादे के साथ अपने इस घर और परिवार से विदा लेते हैं.....

०९/जून/२०१३ को जिम्मी को घर लिवाने के लिए, हम ८-तारीख की शाम को आसनसोल पहुँच गए! हमें पता चला कि अधिकांश लड़के चले गए हैं केवल जिम्मी ही अब तक रुक हुआ है, चूंकि प्रोग्राम पहले से ही तय था अतः हम तो सही समय पर पहुंचे, लेकिन जिम्मी को उसकी उम्मीद से काफी पहले ही पूरी _छुट्टी/फुर्सत_ मिल गई थी! ५-दिन उसने एक तरह से बोरियत में गुजारे! हमारे पहुँचने पर हमने पाया कि कमरे के बाहर, असलियत में एक फ्लैट; जिम्मी और उसके बाकी छह मित्रों ने मिलकर, जिसे किराए पर लिया हुआ था, के बाहर कार्डबोर्ड के कार्टंस में और यूँ ही खुले पड़े -A HUGE-, भारी कूड़े, और सामानों का अम्बार पड़ा हुआ है! फ्लैट के अन्दर हॉल में भी उसी तरह का एक सामानों का अन्य पहाड़ दिखा! जिम्मी और कुणाल(जिम्मी का मित्र) बस ये २-जने ही थे! बाकी अन्य छ: लड़के; पता चला; जूनियर्स थे! इन्होने हमारी आवभगत की! ठहराया और कोल्ड-ड्रिंक्स वगैरह से हमारी थकान और प्यास को राहत दी! उन सामानों के बारे में पूछने पर इन्होने बतलाया कि बाहर वाला रियल कूड़ा है, जो जिम्मी-&-ग्रुप्स की चार-वर्षीय बचत-खुचत का खफत था! ...और भीतर हॉल वाला नए आगंतुकों (छात्रों) का सामान था! जिसे वे फ्लैट 'पूरा खाली होने', पर अपने-अपने ढंग से अपने-अपने कमरों में रखेंगे! कॉलेज होस्टल की कहानी वही बासी स्टोरी है; कि "कुछ" कारणों और अपने हित में उसे त्यागकर कॉलेज के सामने एक बिल्डिंग के इन्होने एक फ्लैट किराए पर ले लिया था, और सभी कामों के लिए ऐसे इलाकों में उपलब्ध 'चाचियों' में से एक चाची इनके लिए खाना बनाना, कपडे धोना, झाड़ू-बुहारू, बर्तन वगैरह के लिए अवेलेबल थी! इन्होने फ्लैट मालिक द्वारा (किराए में शामिल) उपलब्ध कराये चार फोल्डिंग कोर्ट्स को जोड़कर बिछावन लगा दिया था! और खुशकिस्मती से हमारे लिए एक दुर्लभ चीज़ की बढियां मौजूदगी से हमारी थकान तुरंत मुस्कान में बदल गई, वो थी :"बिजली, और चलता हुआ पंखा!" जो थाना टोली, थाना रोड, लोहरदगा, झारखण्ड में कदापि नहीं पाया जाता! छोडिये इसकी कथा! बहुत थके हैं थोड़ा आराम कर लें, क्योंकि शाम में महिलाओं को 'घुमाना-फिराना' भी है, वस्तुतः जिसके लिए वो आईं हैं!

कोल्ड-ड्रिंक्स पीते और लड़कों से बातों के दरम्यान जूनियर्स [B.Tech. 2ndYr-3rdYr_ fifth semester to seventh semester के] बच्चों से बातचीत हुई! और उनके ही द्वारा जिम्मी के विषय में काफी Overwhelming अनसुनी-अनजानी और ह्रदय को शान्ति, संतुष्टि, प्रसन्नता, गर्व, जोश, हिम्मत और राहत देने वाली जानकारियों को सुनकर हमें हैरानी हुई और आंखें नम! जिम्मी इन सभी बच्चों का अध्यापक है! बड़ा भाई है! "...प्रितीश भैया के होते क्या डर!" "....मुझे तो ये समझ में नहीं आ रहा कि अब मेरा क्या होगा? कौन मुझे Guideline देगा?" "...जानते हैं अंकल प्रितीश भैया ने एक बार.........!" इन बातों में खुलकर मुस्कुराते जिम्मी की धवल दंतपंक्ति को मैं नज़रें चुराकर देखता! हरेक बच्चा _*प्रितीश भैया*_ के विछोह की वेदना में कई किस्से बयान करते गये, और रो पड़े!

मकान मालिक ने सुना कि प्रितीश के माता-पिता, दादी, अंकल, और छोटा भाई 'लड्डू', आये हैं तो ह्रदय-रोग की बाइपास सर्ज़री करा चुके और मधुमेह के रोगी वह कृशकाय वृद्ध जबरन हमें इस फ्लैट के ऊपर निर्मित अपने घर लिवा ले गये और हमारी मेहमाननवाज़ी कर हमें सम्मान दिया! उनकी पत्नी और बहु ने भी हमें जिम्मी कि कई गुणकारी व्यक्तित्वों की हमें जानकारी दी और TCS (http://en.wikipedia.org/wiki/Tata_Consultancy_Services"टाटा कंसल्टेंसीज सर्विसेज़ / Tata Consultancy Services" में जिम्मी की प्लेसमेंट हो जाने पर हमें बधाईयाँ दी! उनसे प्राप्त सम्मान से अभिभूत और कृतज्ञ होकर उनके इसरार पर उनके यहाँ से नाश्ता-चाय के बाद हम सभी और प्रितिश के -सभी दोस्तों- को भी साथ लेकर हमने एक साथ शाम गुजारी, आसनसोल के मशहूर GALAXY MALL में घूमें, फिर एक रेस्टुरेंट में डिनर!

०९/जून/२०१३ की सुबह प्रस्थान से पहले मेरे सुझाव पर बच्चे हमें [माँ, वीणा, धीरू(मेरा मौसेरा भाई) और लड्डू] को कॉलेज घुमाने ले गये! कॉलेज, इतवार होने की वजह से सूना था! सिक्यूरिटी क्लेअरेंस मिलने के बाद हम कॉलेज परिसर के अन्दर गए! और भारी उमस भारी गर्मी और तर-तर पसीने के बावजूद भी सबने खूब एन्जॉय किया! मेरी अनुभूति और रोमांच को सिर्फ मैं ही फील कर रहा था! मेरे मन में एक साथ अनेकानेक विचारों का सत्संग चल रहा था! कॉलेज परिसर में कई जगहों पर हमने फोटो खिचवाये! सभी बच्चों ने महिलाओं को कॉलेज के हरेक हिस्से को दिखलाया! चूंकि इतने व्यापक भू-भाग का भमण काफी समय ले लेता अतः उन्होंने दूरे से ही कई इमारतों को अपनी जोशीली कमेन्ट्री के साथ दिखलाया! फिर बाहर!

बाहर आये तो हमारी गाड़ी के पास और अन्य कई लोग इकट्ठे थे! जिम्मी ने मुझे उनसे मिलवाना चाहा, तो मैंने घडी को ऊँगली से ठकठका कर शीघ्रता करने को कहा और बगल के "जुबली पेट्रोल पंप" पर गाड़ी में तेल भरवाने चला गया! लौटने पर देखा २/३ लोग और आ गए हैं! जिमी ने मुझे उन सभी से मिलवाया! '...ये वो दुकानदार 'भैया' हैं, जिनसे सभी खाद्य-पदार्थ अब तक खरीदते थे'; '...ये ज़ेरॉक्स वाले 'भैया' हैं', '...ये किताब दूकान वाले 'भैया' हैं', 'ये नाश्ते-चाय वाले भैया हैं', ........ ........ ........ मकान मालिक भी हैं! ...सभी दोस्त (जूनियर्स) है! और जिम्मी सबके लिए अनमोल है, जो आज जा रहा है, अपने घर .....
 ...गाडी में जिम्मी   का सारा सामान लादा जा चूका है! ...बारिश के लक्षण हैं, ... पर यहाँ आँखें बरस रही हैं! सभी जिम्मी को अपने अंक में भर कर रो रहें है, (हे, भगवान्!) ...जैसे बेटी की बिदाई हो रही हो, कोई मेरे चरण छूना चाहता है तो उसे बाहों से बीच में ही थामकर, उनसे गले मिल उनके सभी सहयोग के लिए प्रणाम कह रहा हूँ, मैंने मकान मालिक 'सिंह साहब' (बक्सर/ बिहार के मूल निवासी) से विदा ली! सारे बच्चे जिम्मी को गोल घेरे में लेकर इसे चुमते हुए आंसू बहा रहे हैं! महिलाए भी सब्र न कर सकीं! इन्होने सभी का शुक्रिया कहा! और सभी बच्चों को आपना आशीष दिया!  सब रो रहे थे, पर जिम्मी नहीं; उसकी खिली मुस्कान और धवल दंतपंक्ति सबको आश्वासन दे रही कि वो ''तन, मन, धन'', ''मन, वचन, और कर्म'' से सदैव उनसे सम्बंधित रहेगा........!"

हम AEC से निकल पड़े; ......अ ...ल ... वि ...दा ...!
G.T. Road पर सनसनाते_ घर, रांची के लिए!
आसमान कहीं आग बरसा रहा है, तो बादलों की बगावत से उमस और चिपचिपी पसीने वाली गर्मी का भारी हमला है! धनबाद में हमने नाश्ता किया! इसी दरम्यान जिम्मी के २-मित्र मोटरसाइकल से हमारे पीछे-पीछे लगे पहुंचे! और हमें धनबाद के निकास मार्ग तक पहुंचा कर ही विदा हुए!
राँची; घर, पहुंचकर मैं अपने कमरे में अपने बिस्तर पर लाठी की तरह गिरा, और सो गया!
.........................
रात्री से पहले लगभग ८:४५ बजे हम लोहरदगा, डेरा पर आ गये!
लोहरदगा!
हमारा मुक्तिधाम!
No Electricity, No Road, No Water, No Network, No Doctors,
NO, NOTHING! सिर्फ स्वार्थ!
न दोस्त, ना दोस्ती!
भीषण गर्मी, अँधेरे और कीचड में डूबा हुआ!
मिटटी तेल का बुझा हुआ दिया
और हम मच्छरों के आहार,
फिर भी, जिम्मी ने DAN BROWN की किताब " i n f e r n o" कब्जाई और अपना पोर्टेबल लैंप लेकर ऊपर खुली छत पर उपन्यास का मजा लेने कूदता हुआ चला गया! थोड़ी देर में ही वापस भागता हुआ आया! मुसलाधार बरसात की बौछार शुरू हो गई थी! ...अरे! फिर अचानक थम भी गई!
अपने -इस- शहर में
अपने इस घर में
अभी भी हम
अजनबी हैं!"
_श्री .

Friday, June 7, 2013

बचपन हर गम से बेगाना होता है!

मित्रों!
आज मेरी उम्र 47-वर्ष है! सन है ...ई०-२०१३! लेकिन मेरी बुद्धि, मेरी सोच, मेरे विचार, मेरे संस्कार, मेरा व्यवहार, मेरे रंग-ढंग, मेरी कार्य-प्रणाली, मेरी जीवन-शैली, मेरा रहन-सहन, मेरी पसंद-नापसंद, मेरे शौक, मेरी आदतें, मेरे गुण, मेरे अवगुण, मेरे ऐब, मेरी अभिव्यक्ति, मेरी क्रिया और मेरी प्रतिक्रिया सन १९६८ से लेकर १९८४ तक में ही सीमित हैं! इतने में ही सिमटकर रह गए हैं! यहाँ के बाद मैं बड़ा हुआ ही नहीं, ना होना चाहता हूँ! वजह थोड़ी मनोवैज्ञानिक है, और संभव है किन्हीं और प्रकार के तथ्यों से मेल भी खाता हो(मुझे नहीं पता)!
आदमी के जीवन का (जितनी कि उसकी उम्र सामान्यतः होती है।) सबसे सुहाना दौर, सबसे सुन्दर, सबसे मीठे पल, A GOLDEN LIFE कब होती है? और उसकी समय सीमा -उम्र- क्या/कितनी होती है? थोडा इस विषय पर सोच कर देखिये, प्लीज़! मैं सीधे अपनी बात की बॉटम लाइन बोलूं तो, अक्षरों में उसका नाम है : -"बचपन"-! इसकी उम्र सीमा से पहले यह सोचिये कि -यदि मैं सही हूँ-, तो इसकी वजह क्या है? मेरा उत्तर है : -"स्वाधीनता एवं संरक्षण-!" ....तब, जब किसी बात की भी जिम्मेदारी और जिम्मेवारी से मुक्त होते हैं! वह अवसर, और वह जीवन जी रहे होते हैं, जिसकी चाह में, लालसा में, निर्मल-निश्छल प्रेम में, खिलौनों में, त्योहारों की उमंगों में, फिल्म और कॉमिक्स के किरदारों में, ...खुद के सैटल करते, हिरोइज्म के ज़ज्बे से भरे, निर्भीक दोस्तों में, अपने-अपने शौक का भोग लगाते पलों में, अपनों की उसी भीड़ में, उसी हंसी में, उसी ख़ुशी में, 'निश्चिन्त और लापरवाही' जैसी उछ्रिन्खालता की तनिक और संगत और मित्र-मंडली की चाह की पुनर्प्राप्ति में, -"उस ज़माने में"- अपने दिवंगत या बिछड़ चुके रिश्तेदारों की मौजूदगी और उनकी वजह से प्राप्त "_संरक्षण_" जैसी ही एक नयी संरक्षित छाँव की तलाश में, ...वह संरक्षण, जो हरेक को 'नौनिहाल से लेकर नौजवानी' तक हासिल रहता है, ...लेकिन जो आज नहीं है! वैसी ही दुनिया के पुनर्निर्माण की और प्राप्ति की चाह में, काल का पहिया वापस/reverse घुमाने की जंग में, जो अनवरत हमें ही आगे ओर धकेलता जा रहा है! , ...और हम अकेले हैं, अकेले, नितांत अकेले, अपनी पूरी क्षमता से वापस धकेलने वाली ताक़त की लड़ाई में खोकर ख़तम-से होते जा रहे हैं! इसी हार-जीत (खुद-से) की जंग में हमारी सारी रचनात्मक और कोमल भावनाएं कुम्हला-सी गयीं हैं! बढती उम्र के साथ जीवन की सच्चाई का ज़हरीला घूट जब पहली बार किसी की हलक से नीचे उतरता है ना, _इसकी जलन वही जानता है! फिर उसे वही सुहाने दिन याद आकर सतायेंगे या रुलायेंगे ये हर एक अदद की अपनी लेख की रेखा की बात है! लेकिन आप इस बात का सर्वे कीजिये या शोध कीजिये, LIFE OF RICH & FAMOUS से लेकर एक निम्नतम जीवन स्तर के आदमी का एक ही उत्तर होगा _:"वो भी क्या दिन थे!!" 
दोस्तों, मेरे विचार से यही सबके जीवन का GOLDEN MOMENT होता है! और यही हमसे आज विलग है, और इसी के पुनर्प्राप्ति की लड़ाई आज कई रूपों में लड़ी जा रहीं है! जिसका क़ानून है, एक कड़वा सच : "All's fair in love and war.", अपने-अपने लाक्षणिक गुणों और अपनी सामार्थयानुसार, सभी के सामने एक नहीं अनेकानेक भयंकर और किसी की भी कल्पना से कहीं ज्यादा त्रासद जीवन मुकाबिल है, जो निःसंदेह सर्वशक्तिमान के समकक्ष शक्तिशाली है! ...........पुराने निश्चिन्त हंसी और दोस्तों की भीड़ में, नौजवानी की उमंग की पुनर्प्राप्ति की चाह _यह लड़ाई ही जड़ है, जो कहीं सात्विक और साश्वत है तो कही दुर्दान्त! यह हमारे वश में नहीं! इसीलिए वे पुराने दिन _"हमारा ज़माना"_ के नाम से चर्चित है! जो हर किसी का अलग-अलग होता है! जबकि अभी हम असुरक्षित और भारी जिम्मेदारियों और जिम्मेवारियो के पराधीन हैं! बात अजीब है लेकिन सच है, _इसी वजह से कोई जांबाज़ है, तो कोई एक मानसिक रोगी, एक पीड़ित आत्मा, शरीर के पिजरे में बंद, असहाय! मजारों, और मंदिरों की भीड़ '.....वो लम्बी पौराणिक और सनातन भीड़ और आस्था', से उत्पन्न उम्मीद हमें भी वहीँ जाकर चादर फैलाने को विवश कर देती है, किये हुए है, करती भी रहेगी, क्योंकि आस्था के आगे सभी तर्क गौण हैं! असफलताओं और भ्रस्त तंत्र की मार से हम अधमरों को तो लड़ना भी नहीं आता, सीखने के लिए भी रिश्वत देनी पड़ती है either in Cash or kind! इस असाध्य छूत की बिमारी ने कितनों को उजाड़ दिया और कितने अभी और उजड़ते जा रहे हैं!

अब इस "हमारे ज़माने" की उम्र की बात पर कोई बहस नहीं हो सकती! ना ही कोई विचार इसे किन्ही एक वाक्यों में रेखांकित कर सकता है! .....but, ....depends !

मेरे ज़माने की उम्र मैंने बता ही दी है! इस दौर के हरेक बात में ऊर्जा है! यही उर्जा _
जो चला नहीं गया,
जो खो नहीं गया,
उसकी बैटरी डाउन नहीं हुई कि,रिचार्ज किया जा सके!
हड़प की गई,
हथिया ली गई,
छीन ली गई,
लूट ली गई,
चुरा ली गई,
लेकिन ताक़त भी इसी इस ज़ुल्म की देन है!  
................
क्या तुम ऐसा ज़ुल्म कर सकोगे?
................
कृतज्ञ और कृतघ्नों के बीच बदलाव को सहना, झेलना, और अपनाने पर हम मनुष्य भले हमेशा विवश रहे हों, पर इससे "हमारे ज़माने" पर कोई फर्क पड़ता है? अपने उस प्यारे अतीत को कोई भूल सका है? नहीं! होश संभालने के बाद से लेकर बढती नौजवानी की तरफ बढती उम्र के बीच न जाने हम कई बार कई बहुरूप में अपने को बड़ा होता देखते हैं, और जिससे, "उस" वक़्त, जिस ICON से आपको लगाव होता है, आप वैसा बनने की कोशिश करते और मुग्ध होते नहीं अघाते! वही ICONS आज भी उसी उम्र और किरदार मात्र की शक्ल में जीवनपर्यंत के लिए अपने हो जाते हैं! उनका आज का रूप-लावण्य भले आज, अब, आपको नहीं लुभाता हो! वही उम्र, वही वक़्त, वही दौर हमारे "आज" की बुनियाद है! इसकी स्टडी से ही कोई भी हमारे अतीत के साथ हमारी ठीक पहचान कर सकता है!
इसलिए मेरी जिद्द है, और लड़ाई ज़ारी रहेगी, _मैं बड़ा होना नहीं चाहता!
मैं आज भी गुल्ली-डंटा खेलना चाहता हूँ, _मुझे आज भी वही गिनती के हंसोड़ शब्द अक्षरशः याद हैं! मैं आज भी "अंटा" _गुच्छु, या शीशे की गोल-गोल गोटियाँ,_गोली, जिसे हम 'अंटा' बोलते हैं", खेलना चाहता हूँ, "मैं आज भी "गुड्डी (= पतंग), अपनी लटाई से उड़ाना, लड़ाना, और तागे का मांझा सोटना चाहता हूँ, वह हर खेल.......... फिर-से खेलना चाहता हूँ, मुहल्ले की गलियों में स्वछन्द दौड़ना-फिरना चाता हूँ, पर यह असंभव नहीं तो बड़ी मुश्किल है; काल पहिया वापस धकेलना यदि संभव होता तो.......!' सो, आगे की सुध ले!
फिर भी 'दिल तो बच्चा है जी!'
और, बचपन हर गम से बेगाना होता है!
२-जनवरी १९६६ को मेरी जन्म हुई! आज २०१३ में मैं ४७-वर्ष के एक शरीर में रहता हूँ! जिसकी शक्ल आपके सामने है! और अक्ल? उसे आपकी, तुम्हारी और तेरी सहायता की ज़रूरत है! क्योंकि मेरा बचपना कायम है!
देखना ये है कि इस मामले में मैं कितना खुशकिस्मत हूँ?
और मैं?
दोस्ती की है, निभानी तो पड़ेगी ही! 
सदैव आपकी सेवा में तत्पर ......

_श्री .

Thursday, June 6, 2013

Naved R Khanposted toश्रीकांत तिवारी

अरे भईया ! ओह !....... Sir you maid my evening. इस ज़िन्दगी में इन शब्दों में इस तरह से प्राप्त यह प्रेम मेरे अब तक के जीवन का पहला अनुभव है, आंसू और मुस्कान जैसे शब्द एक साथ साक्षात मूर्तिमान लग रहे हैं ! नवेद भैया; आपसे प्राप्त यह मेरा अनमोल पुरस्कार मैं ताजिंदगी संभालकर रखूँगा! शुक्रिया! और लाखों सलाम!
08/08/2013

Tuesday, June 4, 2013

i n f e r n o ____________COMPLETED !!

महफ़िल!
किसकी महफ़िल?
खुद की!
तालियाँ, वाहवाहियां और शाबाशियाँ भी, _खुद की!
अमराई में, पेड़ के नीचे, मीर और मिर्ज़ा के शतरंज (Only for Oneself) की बाज़ी जैसी!
खुद की काबिलियत पर खुद ही मुतासिर ...
दूर ..., एक 'गधा' बंधा, खड़ा, इस शेरों-शायरी की महफ़िल से मुख्तलिफ, अपनी क्षुधा-पिपासा के अलावे जिसे और कुछ नहीं चाहिए, ....देख रहा है, ... खा-चबाकर उसकी तरफ फेंके गए उन आम की उन गुठलियों और आम की फलियों के टुकड़ों को,  ...संदिग्ध, ...उसने सूंघा तक नहीं, मुँह फेर लिया।
आम को नापसंद करने वाले, तालियाँ पीटते एक बन्दे ने दुसरे, (इस महफ़िल से अलग) आम का मज़ा लेते बन्दे से, _घृणा से कहा :"देखो गदहा भी आम नहीं खाता!"
दुसरे (आम का मज़ा लेने वाले बन्दे) ने खिलखिला कर _हँसते हुये कहा :"मियाँ! "सिर्फ -गदहे ही- आम" नहीं खाते!"
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अतः हम DAN BROWN को आम ही समझकर पढ़ते हैं, और देसी आम भी, _"जमकर" खाते हैं'! और इसी से हमारी उस क्षुधा-पिपासा को शान्ति मिलती है, जो शीतल गंगाजल अथवा ज़म-ज़म(ZamZam) से मिलती है! कृषण चन्दर जी के सारे-के-सारे 'गधे' मेरे साथ अभी यही "आम" खा रहे हैं, जिसमे हर वह सदगुण समाहित है जो हमारी "-समस्त संकीर्ण मानसिक घमंड-" से परे एक "स्वच्छ", "निर्मल", "निश्च्छल", "निष्पक्ष", "पवित्र", "शुद्ध", _"ज्ञान", "विज्ञान: Every Engineering & Medical Science", "इतिहास", "साहित्य", "कला", "दर्शनशास्त्र", "मनोविज्ञान", "नीति", "कूटनीति", "षड्यंत्र", "रहस्य", "भेद,!....भेद के भीतर भेद", "हर जगह भेद-ही-भेद", "रहस्यमय डरावना रहस्य", "और भेद का उद्भेदन", "THRILL", "ACTION", "SUSPENSE", "TERROR", "HORROR", "रोमांच", के साथ दुनियां के सुन्दर शहर/शहरों की ऐसी सैर, और चौंकाने वाले वैज्ञानिक आविष्कार और यंत्र", जिनका इस्तेमाल दक्ष हाथों से ही नियंत्रित हो सकता है!" "एक विश्व प्रसिद्ध हार्वर्ड युनिवेर्सिटी के आर्ट/सिम्बोलोजिस्ट/आइकोनोलोजिस्ट/हिस्टोरियन, बेहद ही सीधे-सादे 42-वर्षीय प्रोफ़ेसर 'रोबर्ट लैंगडॉन' है, जिनकी सामान्य दिनचर्या की शुरुआत ही -असामान्य- रूप से होती हैं!" (Oh! Dear DAN as usual !! ha ha !) "धर्म", "प्राचीण प्रतीक", या कोई "puzzled दोहा", _भेद भरा!", "आचार", "व्यवहार", "सदगुण", "चरित्र", "मानवता", और कौशल के साथ-साथ 'आदमी-इंसान-मानव-मनुष्य' की सर्वोच्चतम महत्वाकांछा, पशुवृत्ति, और पाशविकता की पराकाष्ठा के डरावने पर सच्चे, खुंखार, बर्बर कुकृत्यों के चरित्र-चित्रण का (without any vulgarity, without any butchered, bloodshed) ऐसा भण्डार है, (outside the boundary of any country and religion) ऐसी सच्चाई है, जिसे ठुकराना निष्ठुरता और कायरता और अनिपुणता हो सकती है, होगी! कभी विवशता के आंसू, ...तो कभी क्रोध की प्रचंड आँधी, ...जिसे हरेक आम खाने वाला पढता है, पढ़ रहा है, पढना चाहिए, पढता होना चाहिए, पढना चाहेगा, और पढ़ेगा भी! आम के साथ "चा"-पानी पीते रहिएगा; DAN के किरदार शायद ही कभी कुछ खाते-पीते है!! पर मान-सम्मान, स्वाभिमान से आप रोमांचित होंगे! ये गारंटी है! गहन शोध से परिस्कृत, विस्तृत विलक्षण विश्लेषण से स्वतः विश्लेषित कथानक, जो किसी और के विश्लेषण का कतई मोहताज़ नहीं!
...पढ़िए!
'..और जो ना पढ़े ...?.....................!'
.......हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है!
चुटकुले और लफंगई की कोई गुंजाइश नहीं! इसके अन्य साधन बेशुमार हैं! but never DAN DROWN!
डेढ़ इंच मोटा, ...और लगभग, ...म्मम्म, ..आधा किलो (से थोदा कम) भारी किताब, 465-पृष्ठ; सिर्फ 24-घंटे की कहानी!! इसकी स्पीड का अंदाजा अब आप लगाइये.....
रहस्य गढ़ना फिर उसे परत-दर-परत उधेड़ने की DAN BROWN की कला बेमिसाल है; जिसमें निहित ज्ञान मेरे (singular; न कि -हमारे- जैसे, कोई मेरे जैसा भला क्यों होगा?) जैसे कूप-मंडूकों को -महासागर- प्रदान करती है!!
i n f e r n o ______complex______COMPLETED !!
HORRIFIC -Unexpected- CLIMAX !!
wOw!! 
YamYam 
"पईसा असूल"
_श्री .

Saturday, June 1, 2013

Candice Swanepoel

http://www.facebook.com/alisonlittleliar.dilaurentis?fref=ts

Candice Swanepoel

My Favorite face

 

मेरे भोले बलम

MERE BHOLE BALAM
मेरे भोले बलम
mere bhole balam, mere pyaare balam मेरे भोले बलम, मेरे प्यारे रे बलम
meraa jivan tere bina, o mere piya hai woh diyaमेरा जीवन तेरे बिना, ओ मेरे पिया है वो दिया
jisame tel naa ho, ke jisame tel naa ho....जिसमे तेल न हो,...के जिसमे तेल न हो ...
meraa jivan tere bina, woh ek baag hai bahaar मेरा जीवन तेरे बिना ... वो एक बाग़ है बहार
jisase hatkar gujare, dur dur se gujare...जिससे हटकर गुजरे, दूर दूर से गुजरे
o mujhe apana bana le, o bhole apana bana le ओ मुझे अपना बना ले , ओ भोले अपना बना ले
haay re bhole apana bana le, haay हाय रे भोले अपना बना ले, हाय
tere kadamo me meraa pyaar, meraa sansaar, meree kismat hai तेरे क़दमो में मेरा प्यार, मेरा संसार, मेरी किस्मत है,
mujhe apana bana le - (2) मुझे अपना बना ले , मुझे अपना बना ले

achchha guru, jab woh aisa kahegee naa, toh mai kya jawaab dunga अच्छा गुरु, जब वो ऐसा कहेगी न, तो मैं क्या जबाब दूंगा?
jawab, jawab, ha ha ha ha are bamru जबाब? हा हा हा हा अरे बांगड़ू
pyaar me, pyaar me, jawaab apne aap ho jaata hai, kahana anuradhaa प्यार में, प्यार में, जबाब अपने आप हो जाता है, कहना अनुराधा
arre guru, guru, anuradha nahee, bindu, bindu अरे गुरु, गुरु , अनुराधा नहीं बिंदु, बिंदु
arre tere kee bhula kahana kahana, kya अरे तेर्र्रे की भुला, कहना, ..., क्या?
meree pyaaree bindu, meree bholee bindu मेरी प्यारी रे बिंदु, मेरी भोली रे बिंदु
meree maatheree bindu, meree sinduree bindu, meree binduri bindu मेरी माथेरी बिंदु, मेरी बिंदुरी बिंदु
meree prem kee naiya bich bhanvar me gud gud gote khaayeमेरी प्रेम की नईया बीच भंवर में गुड-गुड गोते खाय
jhatpat paar laga de, jhatpat paar laga de.....झटपट पार लगा दे, झटपट पार लगा दे
teree bainyaan gale me daal, ban jaa mere gale kaa haarतेरी बइयां गले में डाल, बन जा मेरे गले का हार
jhule prem hindole, o jhule prem hindole झूलें प्रेम हिन्डोलें, ओ झूलें प्रेम हिन्डोलें
mere jivan kee aasha, padh le mere naino kee bhaasha मेरे जीवन की आशा, पढ़ ले मेरे नैनों की भाषा
mujhe mann me basa le, pal pal palako me chhupa le...मुझे मन में बसा ले, पल पल पलकों में छुपा ले
too jhatpat aakar chhatpat mere andhe kuye me dip jalaake तू झटपट आकर छटपट मेरे अंधे कुवें में दीप जलाके 
kar de ujaala, o jara kar de ujaala......कर दे उजाला,ओ जरा कर दे उजाला
bindu re e e e, bindu re e e e, bindu re e e e.........बिंदु रे  ए ए ए बिंदु रे  ए ए ए बिंदु रे  ए ए ए

http://www.youtube.com/watch?v=SU9pv9t4K60