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Thursday, April 11, 2013

THE OATH OF THE VAYUPUTRAS by: AMISH (amish tripathI)

THE OATH OF THE VAYUPUTRAS आधा पढ़ चुका हूँ। थोड़ा विश्राम कर कहानी को आत्मसात करने और समझने का प्रयास कर रहा हूँ! मुझे आभास हो रहा है कि यह मनोरंजन नहीं हो रहा है, बल्कि एक गंभीर चिंतन के साथ अंतर्द्वंद्व चल रहा है! कोई ऐसी बात नहीं है जो प्रश्न हो! सभी उत्तर, समस्त सत्य और तथ्य हमारे सामने हैं! बस उत्कंठा, उत्सुकता, जिज्ञासा यही है कि अब क्या होगा, और कैसे होगा?_और यही सबसे बड़ा सस्पेंस है जिसने भूख-प्यास और नींद का हरण कर लिया है! यही एक निष्ठावान विलक्षण लेखक की लेखनी की जबरदस्त सफलता है का प्रमाण है!

SHIVA TRILOGY की पढ़ाई के दरम्यान उत्सुकता-वश 'और' जानकारी के लिए और, सुनी सुनाई बातों की पुष्टि के लिए जब छानबीन की, तो पाया कि अमीश आज की तारिख में भारत में उपन्यास लेखन से वांछित "स्वान्त:सुखाय" को प्राप्त करते हुए भारतीय समाज में विद्वजनों के सर्वोत्कृष्ट समुदाय का अभिन्न अंग बन चुके हैं! ऐसे चमत्कृत व्यक्तित्व से कौन प्रभावित, अभिभूत और प्रेरित नहीं होगा भला! और यह मेरे लिए बहुत ही सुखद समाचार है कि यह युवा लेखक मेरी पठन-पाठन, ख़ास कर रह-रहकर चौंकाते रहने वाले सस्पेंस थ्रिलर, की भूख को अपने अंदाज़ से शांत करता रहेगा! जैसा कि यह "शिव-त्रय" चौंकाता रहता है! अमीश की आगामी रचना, उपन्यास की अगली श्रृंखला के बारे में उनके अनेक प्रशंशक अपने अनुमानों के आवेग को नहीं रोक पा रहे हैं! और ऐसा होता ही है! .....खैर,

THE OATH OF THE VAYUPUTRAS की पढ़ाई को मध्यांतर में विश्राम देकर एक बार फिर से अब तक की घटनाओं को याद करता हूँ: _ऐसा करते समय यह सावधानी बरतना जरूरी है कि मुझसे कोई "राज़" फाश न हो, जिससे आपका मजा मारा जाय! ....आधी किताब को पढ़ चुकने के बाद भी अब तक यह समझ में नहीं आया है कि इस किताब का नाम 'वायूपुत्रों की शपथ' रखने का क्या औचित्य है!! पिछली विवेचना में (इस किताब को थामने से पहले) यह अनुमान लगाया गया था कि "हनुमान" नाम धारी एक किरदार की एंट्री तो होगी ही! ...लेकिन....यह...अब तक ...नहीं हुआ है! लेकिन वायूपुत्रों की चर्चा यदा-कदा, दो-चार बार हुई है! पता चलता है कि ये पिछले महादेव के बसाय काबिले वाले हैं जिनके अधिकार में "दैवी-अस्त्र" हैं और जो आगामी नए महादेव के चुनाव में मुख्य भूमिका निभाते हैं! हमारे हीरो शिव का नीलकंठ के रूप में बिना किसी पूर्व योजना और चयन के आगमन सबको हैरान किये हुए है! शिव तो खुद हैरान है!! उसे यह सब बकवास और पागलपन लगता है! इस शिव-त्रय में शिव का बचपन बड़े संक्षेप में रहस्यमय तरीके से एक स्वप्न अथवा याद की तरह लिखा गया है! शिव जब क्रोधानुन्माद से उत्तेजित होता है तब उसकी ललाट (दोनों भौहों के बीच का स्थान, जहाँ तिलक लगाया जाता है) पर जलन और धमक होने लगती है और उसका कंठ (गला) असह्य रूप से ठंडा हो जाता है! बचपन में भी शिव के साथ ऐसा हो चुका है; _एक खौफनाक घटना जिसमे एक असहाय स्त्री उसपर होते अत्याचार में (बालक)शिव को मदद के लिए आवाज़ देती है, _एक भयानक राक्षस सरीखा व्यक्ति शिव को मार डालने के लिए खदेड़ता है, लेकिन शिव असमंजस में है कि वह अपनी जान बचाए या उस स्त्री की मदद करे? _ यह याद उसे बार-बार सताती है! शिव को जब ऐसी तकलीफ होती थी तब उसका चाचा उसके ललाट और गले पर एक दवा में अपने ही रक्त की कुछ बूँदें मिलाकर मलहम लगा दिया करता था जिससे शिव को वक्ती राहत मिलती थी! आज भी शिव को वही तकलीफ सताती रहती है! सती के पिता, मेलुहा के राजा दक्ष को शिव से नाराजगी बिलकुल उसी अंदाज़ में होती है जैसा कि शिव पुराण में वर्णित है। हाँ, हालात भिन्न हैं! महर्षि भृगु का किरदार The secret of the NAGAS से ही स्पष्ट है, और उनकी यही भंगिमा और कृत्य शिव पुराण में भी वर्णित है। सिर्फ प्रस्तुतिकरण भिन्न है! भृगु सामने वाले की आँखों में झांककर उसके मन के विचारों को पढ़ लेने की क्षमता रखते हैं; क्योंकि वे ब्रम्हा के पुत्र और सप्तऋषियों में से एक हैं!

पर्वतेश्वर, आनंदमई, भगीरथ, कार्तिक, गणेश, काली और परशुराम, जो अब शिव के दल में शामिल हैं पंचवटी की यात्रा के दरम्यान गोदावरी नदी के पास "दैवी अस्त्रों" के हमले से बच तो जाते हैं लेकिन हैरान हैं कि इसके पीछे किसका हाथ है और क्यों? _इन प्रश्नों का उत्तर और अंदाजा पहले मिल चूका है और अब प्रत्यक्ष हो चूका है! पंचवटी में यह रहस्य भी खुलता है कि देवगिरी में मंदार पर्वत पर नागाओं द्वारा आतंकवादी हमले का क्या उद्देश्य था! उत्तर से जो वांछित ख़ुशी होनी चाहिए थी वैसा न होकर प्रतिक्रिया ज्यादा मानवीय और स्वाभाविक लगता है! फिर यह प्रश्न उठता है कि अच्छा क्या है और बुरा क्या है!? बुराई को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए बुराई की तलाश है! अच्छाई और बुराई एक ही सिक्के के दो पहलु हैं! अच्छाई को अपनाकर बुराई का नाश करने के लिए फैसला होता है! पर वह बुराई है क्या? और कौन उसके पैरोकार और संरक्षक हैं!? कुल मिलकर पूछिए तो इस महागाथा में, असल में "शत्रु"/खलनायक कौन है!?? और इन खलनायकों की लालच/लालसा और महत्वाकंछा क्या है!??

शिव ने समूचे सप्त-सिन्धु सहित, स्वद्वीप, मगध, ब्रंगा, दंडक वन, पंचवटी, उज्जैन सहित पूरे भारत का भ्रमण कर लिया है! ऐसा संकेत मिला है कि शायद वह "परिहा" भी जाएगा; जो वायूपुत्रों का स्थान है! नक़्शे में जहाँ परिहा दिखलाया गया है, आज वह UAE/(अमीरात)है!! युद्ध में शिव का हथियार धनुष-बाण, तलवार और ढाल है, त्रिशूल नहीं!! त्रिशूल को सिर्फ एक बार दिखलाया गया है; पहली पुस्तक में! पूरे शिव-त्रय की कहानी में शिव नायक हैं अतः अंत में उनकी विजय सुनिश्चित है! इसमें कोई दो राय नहीं, लेकिन वह विजय क्या उन्हें और हमें सात्विक प्रसन्नता प्रदान करेगा!? सती का दु:स्वप्न अनिष्ट का संकेत देता है! कहीं ऐसा तो नहीं कि विजयश्री जब हासिल हो तबतक हमारा कुछ 'अनमोल' लुट चूका हो, कुर्बान हो चूका हो?? क्या इस कहानी का अंत सुखद होगा? कहीं दक्ष यज्ञ के हवन कुंड में 'सती' स्वयं को भस्म तो नहीं कर देंगी जैसा कि शिव पुराण में वर्णित है; जिसके बाद शिव बैरागी हो जाते है!!?? .......................?

समूचे SHIVA TRILOGY में अब तक के सारे कथानक में मुझे सबसे ज्यादा किसी किरदार ने प्रभावित किया है और मैं जिनका प्रशंसक बन चूका हूँ और मन ही मन उनकी प्रत्येक उपस्थिति में, प्रत्येक कृत्य में, प्रत्येक भाषण में और प्रत्येक निर्णय में आत्मविभोर हो जाता हूँ और दिल से जिनकी सराहना करता हूँ वे हैं मेलुहा के सेनानायक, सती के पितृतुल्य श्रीमान पर्वतेश्वर! मित्रों, इनका किरदार प्रेरणास्पद है, और सबके लिए एक -रिफ्रेश सबक- है!

सातवें विष्णु श्रीराम के उत्तराधिकारी वासुदेव पंडितों से शिव का मानसिक तरंगों द्वारा संपर्क सिर्फ किसी मंदिर से ही किया जा सकता है! अपनी अनेक शंकाओं के समाधान और अपने निर्णयों की महत्ता को न्यायोचित समझने की गरज से शिव उज्जैन जाता है जहाँ के मंदिर में उसे वासुदेव पंडितों के मुखिया गोपालजी से मुलाकात होती है! स्वयं शिव को और सबको 'अब' शिव की असली पहचान हो चुकी है! शिव को अब अपना उद्देश्य मालुम हो चुका है!

अब शिव ने बुराई को पहचान लिया है! शिव बुराई को जड़ से नष्ट करने के लिए प्रतिबद्ध हो कर संकल्प ले चूका है! शिव और उनका दल संगठित हो चूका है! एक बहुत बड़ा युद्ध अवश्यम्भावी और अटल है! शिव ने चुनौती दे दी है! खलबली मच चुकी है! कौन किसके तरफ है? कौन किसके पक्ष से लडेगा?_निर्णय हो चूका है! युद्ध की तैयारयाँ, पैंतरेबाजियां, षड्यंत्र और जासूसी शुरू हो चुकी है!! युद्ध का मैदान रक्तरंजित होने के लिए तैयार है!

...बस्स, "हर हर महादेव" का उदघोष करते हुए युद्ध की दुंदुभी बजाते टूट पड़ना ही शेष है!!

'..............................!'
तो!?
नमस्ते!