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Tuesday, April 2, 2013

नीलकंठ

हमारे शहर (!?!) के सबसे पुराने, ...सबसे पुराने चाय-नाश्ते की एक दूकान अभी भी अपने उसी पुराने स्वरुप में है जिसे मैं अपनी यादाश्त के मुताबिक पिछले 40 वर्षों से देखता आ रहा हूँ! इसके पहले मालिक स्वर्गीय माधव चन्द्र दास (बंगाली) उर्फ़ "माधो दादा" थे! परसों मैं उनके यहाँ चाय-नाश्ते के लिए बैठा था कि मेरी नज़र धुवें से काली पड़ चुकी दीवाल पर टंगी भगवान्  के इस तस्वीर पर पड़ी! मैंने अपने मोबाइल कैमरे से उसकी चार तस्वीरें खींचीं; उनमें से जो बेहतर लगा उसपर मैंने अपनी कल्पनानुसार कंप्यूटर पर कुछ प्रयोग किया जिसका हासिल ::> मेरे प्रभु "नीलकंठ" प्रकट भय !! 
भगवान् की जटाओं पर का 'चन्द्रमा', और उनका 'नीला'कंठ मैंने बनाया है! देखिये समूची-सारी दुनिया की बुराइयों के "विष" को धारण करने वाले मेरे प्रभु के कंठ की नीली "आभा"(the Tint) को देखिये!! भगवान् ने इस विष को कंठ में ही रोक लिया जिसके परिणामस्वरूप उनका कंठ नीला हो गया, और वे "नीलकंठ" कहलाये!
 "ॐ नमः शिवाय!!"
 _श्री .