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Sunday, December 30, 2012

दोस्तों ! साथियों !! मेरे प्रिये भाइयों !!!

दोस्तों ! साथियों !! मेरे प्रिये भाइयों !!!

अभी दिवंगत दामिनी बहन, हमारे देश की बच्ची जिस ज़ुल्म की भेंट शहीद हो गई, ये वक़्त जश्न का नहीं युद्ध का है। गुराँ दे सींघों के जागने का है। उस बच्ची को न्याय दिलाने का है। इसके लिए हमें भी कुछ करना ही पड़ेगा। हम पाठक सर के बन्दे हैं। क्या हम यूँ ही शर्मिंदा होते रहें और आस लगाए रहें कि कहीं से कोई कपनिक पात्र आकर हमें कहेगा कि "ठण्ड रख, मैं हूँ ना।" और हमारी लड़ाई वो लडेगा, हम सिर्फ उसके कारनामे पढेंगे और खुश होकर निहाल हो जायेंगे। ना जी ना ! ऐसे भ्रम में मत पड़िए। खुद को गुराँ दा सिंह समझो, बनो और लड़ो। "विमल" तुम बनो, तुम बनो, वो भी बने, ये भी बने और मैं भी बनू ताकि पाठक सर की कल्पना शर्मिंदा न हो। _ विमल को शान्ति और चैन की तलाश है, पर प्रारब्ध वश वो विवश है, और लड़े ही जा रहा है, लड़े ही जा रहा है ....और यही इस पात्र की नीयति भी है। पर वास्तविकता में हमारी भी क्या यही नीयति है? कोई चिकित्सक है, कोई सिपाही है, कोई क्लर्क है, कोई एकाउंटेंन्ट है, कोई इंजिनियर है, कोई शायर है, कोई लेखक है, कोई सीधा-सदा गृहस्थ है। पर सबका वजूद तो है न। क्या जो दिल्ली में हैं उन्हीं का प्रदर्शन न्यूज़वर्दी है, बाकी के देशवासी क्या संज्ञाशून्य हो गए हैं। नहीं बंधुओं, ऐसी बात नहीं है। हम सुदूर प्रांत के वासी भी इस निर्दयिता से उतने ही आहात हैं जितने की राजधानीवासी।

...तो फिर हमें करना क्या चाहिए?

यहाँ हम अपने-अपने स्तर पर सुनील बन सकते हैं, रमाकांत बन सकते हैं, अर्जुन बन सकते हैं, जौहरी और उसके अन्य साथियों की तरह बन सकते हैं, और कुछ नहीं तो आदमी की औलाद एक सजग, जागरूक नागरिक भी बन सकते हैं या नहीं? अगर हाँ ! तो मिलाइये हाथ और अपने-अपने स्तर पर जिससे जो हो सके जो भी वो कर सके करे, न कर सके तो शर्म से डूब मरे।

"आज मैं श्रीकांत तिवारी इस मंच पर अपने स्वर्गीय पूज्यवर बाबूजी की कसम खाता हूँ कि अशलीलता को बढ़ावा देने वाली किसी भी वस्तुओं को हाथ नहीं लगाऊंगा। अपने आप को और अपनी अंतरात्मा को स्वक्ष रखूँगा। मेरे संकलनों में से, यदि कुछ अशलील होगा तो उसे जला कर ख़ाक कर दूंगा, उसका समूचा वजूद मिटा दूंगा। अभी इसी समय से मैं ऐसा कर दिखाने का संकल्प लेता हूँ। मैं कसम खाता हूँ कि अपनी बहन बेटियों की सदा रक्षा करूँगा, उनकी ही नहीं अगर मेरे आस-पास ऐसी घटना होती पाई गई तो इसका पुरजोर विरोध करते अपनी जान की परवाह किये बिना हुए उस ज़ालिम से भीड़ जाऊँगा जो ऐसा जघन्य कृत्य करता पाया जाएगा। आज के बाद मेरे घर से, मेरे संकलनों से कोई भी अशलील वस्तु यदि होगी तो उसका वजूद ख़त्म समझिये। मैं नहीं चाहता कि मेरी बेटी मेरे संग्रहित संकलनों को देखकर शर्मिंदा हो और फफक कर रोते हुए मुझे कोसे कि :"छिः!!बाबूजी के पास कैसी गन्दी-गन्दी चीजें हैं!" मैं जनेउधारि ब्राम्हण हूँ, मैं गंगा मईया की शपथ लेता हूँ कि मैं गऊ का माँस खाऊं जो इस प्रकार की अशलील वस्तुएं मेरे पास से पाए जाएँ!"

अगर आपको इस संवाद से "आपके इस SMP मंच का डिसिप्लिन" भंग होता फील हो अगर आपको लगे कि मैं इस मंच को एक "पर्सनल ब्लॉग" की तरह इस्तेमाल कर रहा हूँ तो, मुझे इस मंच पर एक क्षण के लिए भी नहीं रहना। बिना सूचित किये मेरा नाम इस मंच से काट दीजिये, मैं खुद ऐसे मंच पर नहीं रहना चाहता। ...पर ...यदि आपको यह सही लगता है तो इस संवाद को Like क्लिक करने से पहले, कुछ "कमेंट" करने से पहले ये बताने की कृपा अवश्य करें कि आपने 'दिवंगत दामिनी' के दुःख से संतप्त हो कर क्या संकल्प लिया है, और प्लीज़  ...प्लीज़ इसे मज़ाक समझ कर इस संवाद की खिल्ली उड़ने की ज़रुरत पड़े तो पहले मेरे नाम पर स्याही पोत दीजियेगा, (जो पहले से ही पुती हुई है)।

पाठक सर के उपन्यास सिर्फ मनोरंजन मात्र नहीं हैं जिसके 80/- रुपये मूल्य चूका कर हम उनपर कोई एहसान करते हों। उनके उपन्यास की शिक्षाप्रद संवादों को याद कीजिये फिर बतलाइये कि ये हमारे धर्मग्रंथों से कहाँ भिन्न है?  मैं फिर अपने शब्द दुहराता हूँ: : पाठक सर के उपन्यास मेरे लिए उपनिषद के सामान पूज्यनीय है और मैं उनका उपासक था , हूँ और जब तक जिंदा हूँ पाठक सर का उपासक बना रहूँगा।

एक और बात जिनके पास विमल पूरी-की-पूरी सिरीज़ हो फिर नबर वन से स्टार्ट करें और सदा नगारा कूच का तक पहुंचें, इस पढ़ाई के दरम्यान आप जिन अनुभूतियों को महसूस करें उसे, अगर तब तक मैं इस मंच पर मौजूद रहा तो मुझसे और समस्त SMP परिवार के साथ शेयर करें।

राजेश परासर भाई की ये बात मुझे पसंद आई, (भले ही ऐसा न हो) कि प्रदर्शन सड़कों पर क्यों उस जेल पर धावा ही क्यों नहीं जहां वो दरिन्दे कैद हैं! इसमें मैं अपने एक स्टाफ की बात बताना चाहता हूँ उसी के अंदाजेबयां में : " भईया, जानते है, उ सालन के तो अईसन काल कोठरी में बंद करे देवे के चाहीं जहां एक्को लाईट "भों ....वालन" के नई दिक्खे। खाली बाहरेहें से खाना-पानी भित्तरे फेंक देवे के चाहीं। सालन के उहे अंधार कोठरी में सब्भे करम करे पड़े। हुंवें हगें-मूते-सुते-खाएं, लेकिन जिंदा रक्खल जाय, मरे न देवे!"

_श्रीकांत .

अमिताभ बच्चन के नाम श्रीकांत तिवारी का खुला पत्र - एक गुहार ...

आदरणीय श्री अमिताभ भईया !

आपके विडियो पोस्ट में आज देश की बेटी, हमारी बहन "दामिनी"/"अमानत", जो अपने ही शहर में अपने ही भाइयों की दरिंदगी की शिकार बन गई, जिसके जीने के ज़ज्बे ने और अपराधियों को सजा दिलाने की हिम्मत ने पूरे देश को आक्रोश के एक सूत्र में पिरो दिया है। उसका यह ज़ज्बा निश्चय ही व्यर्थ न जाएगा।


मेरे माननीय भईया ! क्षमा याचना के साथ मैं पूछना चाहता हूँ की क्या हमारे हिंदी फिल्मोद्योग की कोई जिम्मेवारी नहीं बनती कि वो पोर्नस्टार्स, अशलील कलाकारों को उनकी फिल्मों को प्रतिबंधित करे? क्यों हमारे हिंदी फिल्म निर्माता खुला सेक्स, गन्दी वाहियात फ़िल्में सस्ते भाव में देश की मासूम और पहले से ही अधमरी जनता को, परोसे जा रहे हैं? क्या उन्हें कभी अक्ल नहीं आएगी? क्या यही उनकी नैतिकता है कि अशलील फिल्म बनाना और दरगाह में जाकर उस भद्दी फिल्म की सफलता की दुआ मांगना !!!??? क्या ऐसी फिल्मो का निर्माण और प्रदर्शन निंदनीय नहीं है? क्या ये शैतान की भयावह वहशियानापन में और उसकी भड़काई हुई आग में घी की आहूति दे कर उसको और ताकतवर और भयानक बनाने के लिए हवन करने जैसा दुष्कृत्य नहीं है? क्या ये आदमी के भीतर बैठे शैतान को उकसाने और ज़ुल्म ढाने के लिए प्रोत्साहित करना नहीं है? क्या चाहता है बॉलीवुड? _ कि उनके द्वारा निर्मित अशलील सेक्स-विषयक फिल्मों के  लज्जाजनक पोस्टरों से अटे पड़े शहर को अपनी महिलाओं के साथ निहारें और शर्म से मर जांये? हम अब बिकिनी में अपनी दीदियों, बहनों और माओं को देखें, और सेक्स की कल्पना को हकीक़त में आजमाने के लिए "दामिनी" जैसी बच्चियों पर टूट पड़ें? पोर्न अभिनेत्रियों को भारत की नागरिकता दे कर क्या सरकार ने समाज सुधार का काम किया है? क्या भारतीय नागरिकता पाकर ऐसी अशलील महिला अभिनेत्री के अभद्र कार्यकलाप बंद हो गए? क्या वह आदर्श भारतीय नारी का प्रतीक बन गई? क्या उसका भद्दा इस्तेमाल करना फिल्म निर्माताओं ने बंद कर दिया? नहीं। नहीं भईया नहीं।


कुछ उन्हें भी नसीहत देने की कृपा कीजिये। आदमी जब तक अपने खुद के भीतर बैठे वहशी शैतान को काबू नहीं करेगा ऐसी घिनौनी और देश को शर्मसार करने वाली घटनाओं को भगवान् भी नहीं रोक पायेगा। फिल्म निर्माताओं से मेरा हाथ जड़कर विनम्र निवेदन है कि विदेशों से आयातित अशलील महिलाओं का बहिष्कार कर उन्हें वापस उनके अपने पसंद के गंदे घरों को चले जाने को कहने की मामूली हिम्मत भी तो दिखाएँ। 

अपराधियों पर अंकुश लगाने के जितने क़ानून बनाए जाते हैं, अपराधी उससे आगे बढ़कर क़ानून का मज़ाक उड़ाने और बच निकलने के उतने ही तरीके ईजाद कर लेते हैं। क्या शराब पर प्रतिबन्ध लगाने से शराब का उत्पादन और उसका गलत उपभोग/उपयोग रूक गया? क्या पान-गुटखा-तम्बाकू पर प्रतिबन्ध लगाने से इनका उत्पादन और खुलेआम बिक्री और इस्तेमाल बंद हो गया? क्या उपदेश सुनकर गुंडे साधू बन रहे हैं? जी नहीं। ऐसा कुछ नहीं होगा। तब तक नहीं होगा जब तक इंसानी फितरत नहीं बदलेगी। दुनिया की कोई सरकार ऐसे घिनौने और दहला देने वाले और समूचे इंसानियत को शर्मसार करने वाली घटनाओं को नहीं रोक पाएगी। जब हम खुद नहीं सुधरेंगे तो दूसरों को सुधरने की क्या नसीहत दे पायेंगे!? हमें इन दुखद घटनाओं से बचने और इन्हें रोकने के लिए पहले तो खुद को सुधारना होगा, फिर जहां तक हमारी ताकत हमारा साथ दे हमें अपने आस-पास घटती ऐसी वारदातों को रोकने के लिए लड़ना ही पड़ेगा। कोई सरकार कोई क़ानून इसमें हमारी सहायता नहीं कर सकती। अब यह सबकुछ हम पर और हमारी मानसिकता पर निर्भर है। अत: आप पूछेंगे कि पोर्न स्टार को निकाल देने भर से क्या अशलीलता का घिनौना प्रदर्शन रूक जाएगा? भईया, मेरा जबाब है कि ये एक पहल तो होगी। एक मिसाल तो बनेगी। इसके कुछ सुखद परिणाम की आशाएं तो बनेंगी।


अमिताभ भईया ! आप हमारे अभिभावक हैं। आपके इस स्थिर-चित्र के साथ आपकी आवाज़ का विडियो पोस्ट देखकर हमें यही लगा कि आप दामिनी के साथ घटी दरिंदगी और उसके दुखद प्रताड़ना और मृत्यु से अत्यंत दुखी हैं। यह एक गम से भीगे एक अभिभावक का करुण रूदन था, आपही की तरह हम भी ग़मगीन हैं और मारे विवशता के खून के आँसू रो रहे हैं। पर आप न किसी विवशता में जकड़े हैं और न ही हमारी तरह मजबूर हैं। आपके शक्तिशाली शाख्शियत और व्यक्तित्व की ताकत को हम जानते हैं। आप एक हुंकार लगा देंगे तो समूचा देश आपके पीछे आपका अनुकरण करता चला आएगा। आप हिंदी फिल्मोद्योग के सबसे मज़बूत आधार-स्तम्भ हैं। क्या हमें ये विवेचना और विश्लेषण करने की ज़रुरत है कि अमिताभ बच्चन की ताकत क्या है? क्या आप हनुमान जी की तरह अपना बल भूल गये हैं जिन्हें उनका बल याद दिलाने के लिए किसी को जामवंतजी बनना पड़ेगा? आपके प्रभाव से हिंदी फिल्मोद्योग क्या अनजान है, इतना धृष्ट है कि आपकी बात न मानी जायेगी? सिर्फ सरकार ही सबकुछ नहीं कर सकेगी। हमें, आपको भी कुछ करना पड़ेगा। अत: आपसे मेरी प्रार्थना है कि आप अपने बॉलीवुड को भी सुधारने की पहल करने की कृपा करे।


खुद को पहले सुधारने की जो बात मैंने कही है वो सिर्फ कथन मात्र न समझे। मैं आज, अभी ये संकल्प लेता हूँ कि मेरे अपने घर में यदि कोई अशलीलता को बढाने, भड़काने वाली वस्तु का वजूद मिटा दूंगा, ताकि मेरी संतान, मेरी बेटी गुनगुन (शरिष्ठा / SHARISHTHA) भगवान् न करे, उन्हें देखकर ये कहें कि "...छिः ! बाबूजी ने कितनी गंदी चीजों का संकलन कर रखा है!!" मैं सबसे पहले स्वयं को संयमित कर घर की सफाई करूँगा और ऐसी घटिया-अशलील वस्तुओं का, यदि वो मेरे घर में हैं, तो उन्हें अभी तुरंत जलाकर ख़ाक कर दूंगा। मैं जनेउ धारी ब्राम्हण हूँ, मुझे कसम है मेरे स्वर्गीय बाबूजी की कि मैं गऊ का माँस खाऊं जो कभी ऐसी शर्मनाक वास्तु मेरे पास से निकले। कसम है बाबूजी की। ,वो वस्तु चाहे बेशकीमती हो या न हो, नष्ट कर दूंगा। हमेशा के लिए उनका वजूद मिटा दूंगा। पर अपनी बेटी को शर्मिंदा नहीं होने दूंगा। बल्कि वो हिम्मती और जुझारू बनेगी जो इन दरिंदों से अपनी खुद की और अपने जैसी देश की बहन बेटियों की रक्षा के प्रति सजग बनेगी।

"कुछ न कहने से भी छिन जाता है ऐजाज़े सुखन।
ज़ुल्म सहने से भी ज़ालिम की मदद होती है।।"
-----------------------------------(श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक की पुस्तक से).

सादर प्रणाम।
आपके सहयोग की अपेक्षा में 
आपका छोटा भाई,
श्रीकांत तिवारी, 
थाना रोड, लोहरदगा (झारखण्ड) 835302 भारत .





 अभी-अभी आपके पोस्ट को पढ़ा जिसमे "डर्टी पिक्चर" और "सनी लिओने" का जिक्र किया गया है। पढ़कर दिल को बहुत सुकून मिला कि मेरी बात को आपके सम्मुख कुछ कद्र मिलेगी। कुछ ही दिन हुए हैं मैंने facebook पर लिखा हुआ है, जिसे यदि आप थोडा वक़्त दें सकें तो शायद मेरी आवाज़ आपकी आवाज़ में मिलकर कुछ बलवती हो सकेगी: