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Wednesday, December 19, 2012

प्रिय विशी भाई!
सादर सप्रेम नमस्ते,

आज मेरे सुबह के पोस्ट की वजह से SMP fb फॅमिली ग्रुप में आप सहित सबका आक्रोश बल्कि क्रोध में हुए अंधे आक्रोश से मेरा सामना हुआ। किसी आदमी के एक वाक्य से उसके समूचे वजूद और उसकी दिमागी सोच-समझ और क्षमता का अंदाज़ा लग जाता है, फिर SMP fb फॅमिली ग्रुप में तो मैं कल भारती हुआ और मुझे आज ही 'निकल जाओ वर्ना निकाल दिए जाओगे' का नोटिस भी मिल गया, क्योंकि मैंने सिर्फ एक लाइन ही नहीं पूरी व्याख्या ही छाप दी! ये मेरी अस्पृश्यता, अछूत-पन का इससे बड़ा और क्या परिणाम हो सकता है जिसे पूरी-की-पूरी इंस्टीच्युशन के एक-एक सदस्यों द्वारा अस्वीकृत कर दिया गया। ये मेरे अपने कुकर्मों का फल है। जो जैसा बोवेगा वो वैसा ही तो कटेगा। सो फल मुझे मिला। सो फल मैंने काटा और बाकायदा उसका बढ़िया मज़ा चखा। पर लगता है अभी सबकी भड़ास पूरी नहीं निकली है।

मुझे क्षमा याचना का सुजाव, आपके माननीय साथी और सदस्य "KBC जी"  ने दिए, मैंने उनकी बात का अनुसरण करते हुए कि "मुझसे नहीं पूरे ग्रुप और विशेष कर श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक जी से माफ़ी मांगिये", मैंने समस्त "SMP fb फॅमिली ग्रुप" और स्वयं मेरे पूज्यनीय श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक जी से उसी पृष्ठ पर क्षमा मांगी है।
पर माफ़ी देने का सबका अंदाज़ देखिये ! कैसे मुझे ह्युमिलियेट किया गया है! उनका भी जिन्होंने मुझे ये आइडिया दिया था; कुल भूषण चौहान! कहते हैं :"job accomplished." जिनकी चिंता है कि वो मुझे झाड़ियों के पीछे ले जा कर अपनी मनमानी न कर सके!! साइबर क़ानून के आप विद्वान् है, इस विषय के पंडित है, आप ही फैसला कीजिये कि इसी मंच पर "वायोलेशन" किसने कितना किया है, ज़रा और आगे पढ़िए:

आज मैं जो - जब, पाठक साहब का उपन्यास पढ़ रहा होता है तो सहज ही अपने-आप को कथानक के नायक के रूप में खुद का तस्सवुर कर लेने की, अब तो यही कहूँगा कि, हिमाकत कर बैठता है !! सो !!! आज पता चला कि कितनी बड़ी ये मानसिक बिमारी है। मुझे रिहैबिलिटेशन सेंटर के लायक केस माना गया। पवन शर्मा ने पोस्ट में मुझे बदतमीज़ कहा, ये जानते हुए कि किसी को बदतमीज़ कहना सबसे बड़ी बदतमीजी होती है। बाकियों ने मेरे पोस्ट को अपने पर फोकस बनाने का घटिया प्रयास कहा गया, अलिखित-अघोषित भद्दी-भद्दी गालियाँ दीं गईं। पर शायद वो सब SMP fb फॅमिली ग्रुप के नियमों का उल्लंघन नहीं करतीं! हमारे धर्मग्रंथों में कहा गया है कि यदि अपने आराध्य देव का अपमान होता देखो तो अपमान करने वाले की जीभ काट लो या फिर वह स्थान त्याग दो। आज उस धर्म का पालन पूरे जोशो-खरोश से किया जाता दिखा। बधाई !

किसी ने मुझे ही दिल्ली गैंग रेप काण्ड का बालात्कारी कह दिया। पवन शर्मा ने मुझे ग्रुप से निकाल देने के लिए "मेरा ज़नाज़ा धूम से निकलने" की घोषणा की है। पवन शर्मा का वह पोस्ट अभी ज्यों-का-त्यों स्टैंड है। मैंने उन्हें मोस्ट वेल्कम बोला है। कोई एक्सपर्ट साहब मेरे लिए अपने इलाके की गन्दी-भद्दी गालियों से न नवाज़ पाने के लिए दुखी है। कोई मुझे पीटना चाहता है। इतने सम्मानित और सुरक्षित हैं सुरेन्द्र मोहन पाठक साहब इस मंच के सदस्यों द्वारा, आज खुलासा हुआ !!!

मेरी समझ में आया कि मेरी जैसी मानसिकता वाले दरअसल बड़े कायर होते हैं। अन्यथा मैं डटा रहता और देखता कि कोई मेरा क्या उखाड़ लेने की कूवत रखता है, क्योंकि क्या जानते हैं ये "भाई लोग" मेरे बारे में जो अपनी मांद में से मुझ पर गुर्र्रा रहे है!? इनसे और उलझकर ऐसा कर के मैं क्या पा लेता? बल्कि ये कहिये कि सबकुछ खो देता। कहते हैं किसी को बेईज्ज़त करना उसको मृत्यु दण्ड देने के सामान है। पौराणिक ज़माने में ऐसा होता था कि अपराधी को बीच चौराहे पर खूंटे से बाँध दिया जाता था और सारी जनता उस पर थूकती थी, फिर उसे बहिष्कृत कर दिया जाता था।


मेरी पत्नी, माँ और मेरे बेटे सुबह से मुझे बेईज्ज़त और जलील होता देख रहे हैं, ज़िल्लत क्या होती है इन्हें पहली बार असलियत में देखने को मिल रही है इसलिए हक्के-बक्के हैं। इन्होने अभी तक मेरे कमरे में पाठक साहब के मंदिर के आगे नतमस्तक उपासक के रूप में ही देखा है इसलिए इन्हें कतई अंदाजा नहीं था कि मेरी अपनी जल्दीबाजी में हो चुकी भयानक भूल का अपराधी बन बैठा हूँ जिसकी सजा भुगत रहा हूँ। अब उनकी जिद्द है की मैं ये ग्रुप छोड़ दूँ पर उनके लाख कहने पर भी मैं ये ग्रुप नहीं छोड़ना चाहता। सभी कल से पूछ रहे हैं कि आखिर मैं क्या कर रहा हूँ। ...यही कि देखूं क्या-क्या और होता है।

आपकी पहली प्रतिक्रिया मैंने पढ़ी थी, वो शायद हट गया है, उसे पढ़ते वक़्त मैं रो पड़ा। आपकी संयमित और आश्वस्त करने वाली ही जुबान/जुबां की ही मैं प्रतीक्षा कर रहा था। आपसे जब से, चंद शब्द ही सही, बातें हुई हैं उससे आपके प्रति स्वाभाविक स्नेह और अनुराग पैदा हो गया है। जबकि पवन शर्मा की बातों का अंदाज़ यूँ है जैसे वे इस ग्रुप के दंडाधिकारी हैं, अत: उनकी धौंस भरी संवाद अदायगी ध्वनित नहीं होती!? इस व्यक्ति ने अपने दुसरे कमेन्ट से ही जैसे मुझ पर चाबुक तान लिया हुआ है, और अपनी मोनिटरी के नीचे रखना चाहता है।

विशी भाई! मैं और कटुता बढ़ाना नहीं चाहता। जिसका प्रमाण मेरी क्षमा प्रार्थना है, लेकिन उसके बदले में जिस दुर्व्योहार का घटिया प्रदर्शन सामने आया है कि कोई भी यहाँ, आपके सामान, साफ़ मन का नहीं है। ठीक है। सही है। ये मंच प्यार बांटने का मंच है, मेरे दिल में भी बहुत प्यार है। मैं बाटूंगा। मिलने आऊंगा। और सबके साथ पटियाला पैग शेयर करूँगा, पर जब तक कुछ समय साथ नहीं बिताया जाए घनिष्ठता कैसे होगी। मैंने एक भूल-वश भयंकर गलती की, मुझे दोषी पाया गया, सजा सुनाई गई। फिर माफ़ी की दरख्वास्त दाखिल्दाफ्तर करने का सुझाव दिया गया। मैंने सबका फैसला सिर-माथे लिया। माफ़ी मांग ली। पर अभी उनसे माफ़ी मिलना बाकी है वास्तव में जिनके सम्मान में इस मंच का निर्माण किया गया है। उससे पहले ही सबने मेरी खिल्ली उडानी शुरू की और मेरी पोस्ट की गई तताकथित विवादित पोस्ट को साबित कर दिखाया, कि जिस ग़लतफ़हमी में मैंने भूल की वो दरअसल भूल नहीं बूल्ज़ आई लाइक शॉट थी। ये मेरी जीत है।

मैं आपके तरफ अपना हाथ बढ़ा रहा हूँ। इस बढे हुए हाथ को निश्छल मन से बिलकुल निश्चिन्त हो कर थाम लीजिये। ऐसा कर के आप मेरे मित्र तो बनेंगे ही मैं भी आप जैसा बेमिसाल दोस्त पा कर सुखी हो जाऊँगा। मेरी दोस्ती का हाथ थाम कर आप एक तरह से मुझपर एहसान करेंगे जिसे मैं ताजिंदगी नहीं भूलूंगा। आप कहते हैं आप मुझसे उम्र में छोटे हैं लेकिन व्योहारिकता के मामले में मैं आपके आगे कुछ भी नहीं। यही सोच कर दोस्त बन जाओ दोस्त कि ये पाठक जी के अलफ़ाज़ हैं : कि आज के बेमुरव्वत ज़माने में दोस्ती जैसी बेमिसाल चीज़ बड़ी मुश्किल से मिलती है, मैं तो आपके खजाने में इजाफा ही करने की गुजारिश कर रहा हूँ। पर इसका फैसला तो आप ही को लेना है। आपकी दोस्ती से मैं अच्छा सदस्य बने रह कर ग्रुप के लिए अपना मुझसे जो भी हो सकेगा, योगदान दूंगा। यही प्रार्थना हर तरह की क्षमा याचना के साथ राजेश पराशर जी से भी है जिन्हें इसलिए शर्मिन्दा होना पड़ा है कि इस ग्रुप में उन्होंने मुझे ADD किया, जो उनकी जुबान में फटा हुआ 'पंखा' है, जिसकी मजम्मत की जानी चाहिए। हसन ज़हीर साहब भी जो जिस पर अपने हाथ न आजमा सके, बहती गंगा में हाथ न धो सके।

अगर विशी भाई, मेरी ये दोस्ती प्रार्थना आपने क़ुबूल कर ली तो मैं सारी शिकायतें भूल कर निर्मल मन से कल के उदीयमान सूर्य भगवान् को प्रणाम करूँगा।  पहले आप से रिश्ता पूरी पक्के तौर पे तो जुड़ जाय। ये मेरा इम्तिहान का वक़्त है। समय ...समय ....

सबके सुख और निर्मल मन की कामना के साथ_ फिर से सभी से क्षमा याचना के साथ_

आज का सजायाफ्ता गुनाहगार,
आपका सबका अपराधी_ 19/12/2012 सायं 08:42
श्रीकांत .
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विशी सिन्हा का पत्रोत्तर :
Shrikant Tiwari जी...
Vishi Sinha 1:52am Dec 20
Shrikant Tiwari जी

सादर नमस्कार,

पहले मैं एक बात मैं साफ़ कर देना चाहता हूँ कि मैं और ये ग्रुप जिसे हम 'पाठक-प्रशंसक-परिवार' कहते हैं, एक दूसरे से अलग नहीं किये जा सकते. We are inseparable. अगर मेरा परिवार आपकी नज़रों में गलत है तो मैं भी गलत हूँ. अगर आपको मुझमें कोई भी अच्छाई नज़र आती है, तो यकीन जानिये, ये मेरा परिवार मुझसे भी कहीं ज्यादा ज़हीन और संजीदा सदस्यों की जमात है.

अगर मुझे मेरे परिवार के साथ सम्पूर्णता में अपनाने के लिए आपका दोस्ती का हाथ अभी भी बढ़ा हुआ है, तो मुझे ख़ुशी से आपकी दोस्ती कुबूल है.
मुझे उम्मीद है, सुबह के सूर्य के साथ आप सारी शिकायतें भूलकर निर्मल मन से एक नयी शुरुआत करेंगे.

और जैसा ऊपर डॉक्टर राजेश पराशर जी ने कहा, और मुझे भी यकीन है, इस प्रकरण और इससे जुड़ी कड़वी यादें मिटा दी जायेंगी, भुला दी जायेंगी और हमारे दिलों में सिर्फ और सिर्फ अच्छी यादें रह जायेंगी.

एक नए सूर्योदय की प्रतीक्षा में,

- विशी
 
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प्रभात 06:21     20,दिसंबर,2012  गुरुवार 
"गुरु गोविन्द दोनों खड़े काके लागुन पाएँ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविन्द दियो बताए।।"
-ॐ गूँ गूरूवे नमः।
ओए  विशी भाई तुसी तो छा गए मालको!!
 उत्तर के लिए धन्यवाद।
हाँ ! मेरा हाथ अभी भी पूरे निर्मल मन से आपको पूरे'पाठक-प्रशंसक-परिवार' के समस्त सदस्यों के  साथ सम्पूर्णता में अपनाने के लिए मेरा दोस्ती का हाथ अभी भी बढ़ा हुआ है!
 नया सूर्य उदित हो चूका है ! उसके आगे मैं नतमस्तक हूँ।
"ज्योतिर्गानान्पतेये दिनाधिपतए नमः।।"
और जैसा ऊपर डॉक्टर राजेश पराशर जी ने कहा, और मुझे भी यकीन है, इस प्रकरण और इससे जुड़ी कड़वी यादें मिटा दी जायेंगी, भुला दी जायेंगी और हमारे दिलों में सिर्फ और सिर्फ अच्छी यादें रह जायेंगी।
आमीन।
शुभाकंछी 
- श्रीकांत .

दिल्ली में घटी गैंग रेप की ताज़ा पाशविक घटना

दिल्ली में घटी गैंग रेप की ताज़ा घटना का समाचार जैसे ही मुझ तक पंहुचा मुझे "जहाज का पंछी + खबरदार शहरी + मौत का रास्ता = विमल !!" }-श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक जी का ही स्मरण हुआ। सबकुछ लगता है वैसे ही हुआ है जैसा की इन उपन्यासों में लिखा गया है। फर्क (सिर्फ) ये है कि यहाँ "ओवरकोट-धारी खबरदार शहरी" कोई नहीं है। कल्पना और यथार्थ का ये फर्क पौराणिक सत्य है। जिसके वजह से रावण को हर साल मारते ही वो फिर जीवित हो उठता है।

मेरा भी खून खौला जैसे कि श्री Rajesh Parasharजी का खौला है। जबसे यह भयानक और अत्यंत दुखदाई और इंसानियत को शर्मसार करने वाली दुर्घटना सार्वजानिक हुई है समूचे देश में आक्रोश की जो ज्वाला धधकी है उसमे आहुति दिए बगैर इस युद्ध को नहीं जीता जा सकता। सवाल हो सकता है कि इस युद्ध को जीतने के लिए कौन, कब, कैसे, किसकी आहुति देगा।

जब कोई हादसा हो जाता है तभी सुरक्षा का विषय बहस का मुद्दा बन जाता है। ऐसा जघन्य अपराध करने वाले कोई भी हो सकते हैं। पहचानना मुश्किल है। किस-किस से सावधान रहें हम !? रेप के लिए फांसी की सजा तय करने के लिए बात ने फिर तूल पकड़ लिया है। न्यूज़ चैनल्स पर आज दिन भर से इसी केस के समाचार और बातें हो रही हैं।

पाठक सर के उपरोक्त उपन्यास प्रमाण हैं कि ऐसी पाशविक घटना कोई नई बात नहीं है। 

यह समस्या बड़ी भयानक है। लेकिन कड़े फैसले लेने से ही इस समस्या का समाधान नहीं हो जायेगा। आदम जात को अपने भीटर के राक्षस से जीतना होगा।

 "_पर उपदेश कुशल बहुतेरे, जे आचरहीं ते नर न घनेरे_", खुद आगे आये बगैर कारवाँ बनने की सोचना भूल होगी। जो जैसा जिस ताक़त और हैसियत का है उसे इस युद्ध में मन, वचन और कर्म से इसमें अपना योगदान देना होगा। हमारी लड़ाई हमें खुद लड़नी होगी, हमारे लिए कोई दूसरा नहीं लड़ने वाला। अपने सुरक्षा के इंतज़ाम हमें खुद करने होंगे। 

इन्सान अपने कर्तव्य : 'अपने पर आश्रित अपने परवार की जिम्मेवारी' की बोझ से ऐसा दबा हुआ है कि विवश होकर सिर्फ दाँत किटकिटा कर भर रह जाता है। ये दबाव हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है। इससे उबार पाना बहुत-बहुत कठिन है। और इसी का फायदा शोहदों को मिलता है। जिससे मिली ताक़त का वो बेधड़क प्रयोग कर कहर ढाने में कामयाब हो जाते हैं। 

सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल जैसे हालत वाले दिलेर, व्यक्ति या व्यक्तियों का निश्चय ही कहीं-न-कहीं वजूद ज़रूर है। या ऐसी मासिकता के साथ निर्भीक हो कर आगे आने वाले मर्द असंख्य भी हो सकते है, पर कुछ बंदिशों का अंकुश उन्हें फंक्शन करने से रोके हुए होगा, _हो सकता है। 

क्या ये कहना अच्छा लगता है कि जिसके पास खोने के लिए कुछ नहीं होता ये सिर्फ उसके भर के लिए ठीक है?

बहुत ही दुःख हुआ है।