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Monday, December 3, 2012

T A L A A S H ....!!!!! AAMIR KHAN KI ...

आमिर ! रानी !! करीना !!!
T  A  L  A  A  S  H  ...............!!!!!!!!!!!!!
02/12/2012 रविवार, रांची, गैलेक्सिया मल्टीप्लेक्स [पॉपकॉर्न]...पुराना "उपहार टॉकीज़", कमल के साथ।
















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आमिर के प्यार और उनके स्टारडम के रौब में कुछ ज्यादा ही उम्मीद हो गई थी, इसलिए ...थोड़ी फीकी हो गई। 2012 के शुरू में विद्या बालन की "कहानी" जैसा सस्पेंस का इसमें अभाव लगा, आसरा ही लगा रहा कि अब चौंके-कि अब चौंके! ...कमजोर कहानी, कोई षड्यंत्र नहीं, कोई खलनायक नहीं, ...सिर्फ एक घटनाक्रम जिसकी तफ्तीश कोई रोमांच जगाने में असमर्थ है। आमिर की व्यक्तिगत ट्रेजेडी से सहानुभूति तो होती है, पर तसल्ली नहीं मिली।

हाँ! फिल्म की कहानी से उलझन बनी रही।

नवाज्ज़ुद्दीन सिद्दीकी (शानदार 'तैमूर') का क्या गुनाह था, जो उसके 'किलिंग' पर सिमरन(!) हमको तसल्ली महसूस कराना चाहती है, सिमरन की मौत से उसका क्या वास्ता था? सिमरन की मौत में उसका तो कोई कसूर नहीं था। फिर ...!? वो सिर्फ एक मौकापरस्त की भूमिका में होता है, फिर भी नवाज़ के यूँ जाया किये जाने पर दुःख होता है।

फिर देखूंगा तब समझ में आएगा। आमिर की खातिर एक बार इस फिल्म को ज़रूर देखें।

आमिर खाखी वर्दी में खूब जमे हैं। पर उम्मीद में ही फिल्म ख़त्म !! आमिर की फिल्म में सुपरनेचुरल  किरदार की मौजूदगी दिलीप साहब की मधुमती, या अन्य पुरानी सस्पेंस हिंदी फिल्मों के आगे कहीं नहीं ठहरती। हालाँकि यूँ तुलना ठीक नहीं है। क्योंकि कोई तुलना हो ही नहीं सकती।

आमिर का दमदार किरदार कहीं खो जाता है, अफ़सोस कि वो वापिस हासिल ही नहीं होता। आखिरकार आमिर फूट-फूट कर रोये। सुपरनेचुरल को प्रमाणिक करने वाली इस फिल्म में उत्सुकता, उत्कंठा का सर्वदा अभाव है।

...सच बोलें? नई मज़ा आया।(punchline).

-श्रीकांत तिवारी
अभिनन्दन अपार्टमेन्ट
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