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Tuesday, May 1, 2012

मुंशी प्रेमचंद की कहानी "दो बैलों की कथा" के कुछ अंश :

 मुंशी प्रेमचंद की कहानी "दो बैलों की कथा" के प्रारंभिक रोचक अंश :  

जानवरों में गधा सबसे ज्यादा बुद्धिमान समझा जाता है. हम जब किसी आदमी को पल्ले दर्जे का बेवकूफ  कहना चाहते हैं, तो उसे गधा कहते हैं. गधा सचमुच बेवकूफ है, या उसके सीधेपन, उसकी निरापद सहिष्णुता ने उसे यह पदवी दे दी है, इसका निश्चय नहीं किया जा सकता. गायें सींग मारती हैं, ब्याई हुई गाय तो अनायास ही सिंहनी का रूप धारण कर लेती है. कुत्ता भी बहुत गरीब जानवर है, लेकिन कभी-कभी उसे भी क्रोध आ ही जाता है; किन्तु गधे को कभी क्रोध करते नहीं सुना, न देखा. जितना चाहो गरीब को मारो, चाहे जैसी सड़ी हुई घास सामने दाल दो, उसके चेहरे पर कभी असंतोष की छाया भी न दिखाई देगी. बैशाख में चाहे एकाध बार कुलेल कर लेता हो; पर हमने तो उसे कभी खुश होते नहीं देखा. उसके चेहरे पर एक स्थाई-विषाद स्थाई रूप  से छाया रहता है. सुख-दुःख, हानि-लाभ, किसी भी दशा में उसे बदलते नहीं देखा. ऋषियों-मुनियों के जितने गुण  हैं, वे उसमे पराकाष्ठा को पंहुच गए हैं, पर आदमी उसे बेवकूफ कहता है. सद्गुणों का इतना अनादर कहीं नहीं  देखा.
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लेकिन गधे का एक छोटा भाई और भी है, जो उससे कुछ ही कम है और वह है "बैल". जिस अर्थ में हम "गधा" शब्द का प्रयोग करते हैं; कुछ उसी से मिलते-जुलते अर्थ में 'बछिया के ताऊ' (बैल) का भी प्रयोग करते हैं. कुछ लोग बैल को शायद बेवकूफों में सर्वश्रेष्ठ कहेंगे; मगर हमारा विचार ऐसा नहीं हैं. बैल कभी-कभी मारता भी है, कभी अड़ियल बैल भी देखने में आ जाता है. और भी कई रीतियों से वह अपना असंतोष प्रकट कर देता  है.  अतएव स्थान गधे से नीचा है. 
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मुंशी प्रेमचंद जी ने गधे की दो विशेषताएं यहाँ किसी अज्ञात कारणों से उद्घृत नहीं की वो हैं : गधे का रेंकना  और उसकी जगत प्रसिद्ध दुलत्ती!! ...उस वक़्त के गधे शायद अंग्रेजों की गुलामी के कारण अपनी ये 'गदहसुलभ' स्वाभाविक प्रवृत्ति भूल गए होंगे जो मुंशी जी के सज्ञान में नहीं आई अन्यथा इन बातों भी गधा  बैलो के मुकाबले खूब प्रवीण है.

-श्रीकांत 


 




TYPING PROBLEM ! THE WORD I TYPE IN HINDI PHONETICS, NOT APPEARING !! IT'S VERY DIFFICULT TO CORRECT THE HINDI SPELLINGS NOW BECAUSE THE SPELLING OPTIONS DOES NOT COMING ON THE PAGE!!!

 

_ये किसने कहा है ?

ये किसने कहा है ?

"बस एक ही उल्लू काफी है बर्बाद गुलिस्तां करने को,
हर शाख पे उल्लू बैठा है अन्जामें गुलिस्तां क्या होगा?"  

 ...जिसने भी कहा हो क्या खूब कहा है.

श्रीकांत