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Monday, October 11, 2010

11,OCTOBER`2010 -00:01-hrs. !!

"भए प्रकट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हितकारी l 
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ll 
लोचन अभिरामा तनु घनश्यामा निज आयुध भुज चारी l 
भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी ll
कह दुई कर जोरी अस्तुति तोरी केही बिधि करौं अनंता l
माया गुन ग्यानातीत अमाना बेद पुरान भनंता ll
करुना सुख सागर सब गुन अगर जेहि गावहीं श्रुति संता l 
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयऊ प्रगट श्रीकंता ll 
ब्रम्हांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै l 
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै ll 
उपजा जब गयाना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै l 
कही कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ll 
माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा l 
कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा ll 
सुनी बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा l  
यह चरित जे गावहीं हरिपद पावहीं ते न परहीं भवकूपा ll"